Today and tomorrow : Crime Story | जमीनी विवाद में हुए दो भाई अगुवा, जानें फिर क्या हुआ
Crime Story : जमीनी विवाद में हुए दो भाई अगुवा, जानें फिर क्या हुआ
शाम का वक्त था. गर्मी अन्य दिनों की तुलना में आज कुछ अधिक ही थी. शाम होने के बाबजुद गर्मी में कोई फर्क नहीं पड़ा. ऐसे समय में थाने में पांच व्यक्ति पहुंचे. पांचो व्यक्ति बुरी तरह से घायल अवस्था में थे. उन्होंने पुलिस को बताया कि कबीर और उसके बेटे ने उनके साथ मारपीट की और सुनील और अनिल को अपने साथ अगवा कर ले गए है. मामला काफी सीरियस था.
यह जमीनी मामला सुनील और एक किसान कबीर के बीच काफी लंबे समय से चल रहा है. जमीन को लेकर दोनों पक्षों में कई बार झगड़ा हो चुका था और दोनों पक्षों ने थाने में एक-दूसरे के खिलाफ दर्जनों बार शिकायत दर्ज करवा चुके थे. लेकिन इस बार मामला काफी गंभीर था. इसलिए एसपी ने तुरंत पुलिस टीम को वहां के लिए रवाना किया. जमीनी विवाद सुनील व अनिल और कबीर की बीच कई वर्षो से चल रहा था. सुनील और अनिल मोहनलाल के बेटे है. दूसरी तरफ कबीर कबीर दो भाई है. छोटा भाई मां के साथ रहता है जबकि कबीर अपने परिवार के साथ अलग रहता है. कबीर का पुराना आपराधिक रिकार्ड भी है. इसलिए कोई भी व्यक्ति उसके खिलाफ मुंह खोलने का साहस नहीं कर पाता था.
दोनों पक्षों में विवाद की शुरूआत करीब एक दशक पहले उस वक्त शुरू हुई जब अनिल ने गांव में रहने वाले कबीर के छोटे भाई से उसकी 22 एकड़ खेती की जमीन का सौदा पक्का किया. कबीर की मां के पास 22 एकड़ खेती की जमीन थी. तीन बटंबारे के हिसाब से कुल 22 एकड़ जमीन में से 7 एकड़ जमीन कबीर की बनती थी, लेकिन उसके छोटे भाई ने पूरी जमीन अनिल को बेच दी. इस जमीन के सौदे की जानकारी जब कबीर को मिली तो वह अनिल से मिलकर पूरी बात बताई और उससे निवेदन किया कि वह उसके हिस्से की सात एकड़ जमीन उसके लिए छोड़ दें, पर अनिल जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. कबीर को इस बात पर गुस्सा आ गया. उसने अपने हिस्से की जमीन पाने के लिए अदालत में केस कर दिया. एक दशक से यह केस अदालत में चल रहा था. इस दौरान जमीन अनिल के कब्जे में थी. पिछले चार-पांच माह पहले जिला अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया कि कुल जमीन 22 एकड़ में से एक तिहाई जमीन यानी 7 एकड़ 2 डेसीमल जमीन को बेचने का हक बेचवार को नहीं है. इस नाते अदालत ने उक्त जमीन की रजिस्टी शून्य कर दी.
अदालत का फैसला सुनकर जहां अनिल और सुनील को झटका लगा वही कबीर खुश था. अदालत के फैसले अनुसार उसने अपने हिस्से की जमीन पर जबरन कब्जा कर उसमें मूंग की फसल भी बो दी. कबीर द्वारा इस तरह से खेत में कब्जा करके बुआई करना गलत था, क्योंकि अदालत ने केवल अपना फैसला सुनाया था. उस को अमल में लाने के लिए अभी भी कानूनी कार्रवायी बाकी थी. कबीर जानता था कि अनिल इस फैसले के बाद ऊपर की अदालत में अपील जरूर करेंगा. इस तरह से फिर फैसला होने में दस-बीस साल लग जाएगें. ऐसे में उसने किसी कानूनी कार्रवाई का इंतजार नहीं किया और जमीन पर कब्जा कर लिया. इधर परिवार अदालत के फैसले से ऐसे ही नाराज थे, ऊपर से कबीर द्वारा जमीन पर बाहुबल दिखाकर कब्जा करना उनके लिए आग में घी का काम किया. लेकिन परिवार ने कानून का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने जिला अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, जहां से उन्हें स्टे मिल गया. इसी बात को लेकर दोनों पक्षों में विवाद बढ़ता गया.
सुनील का कहना था कि उन्हें यह स्टे जिला अदालत के फैसले पर मिला है. यानी जिला अदालत का फैसला लागू नहीं किया जा सकता, इसलिए कबीर ने जिस जमीन पर कब्जा किया है वह उसकी नहीं बल्कि अभी भी उन्ही की है. इस तरह एक बार फिर कबीर को जमीन अपने हाथ से फिसलती सी महसूस हुई, लेकिन उसने अपना पैतरा अपनाते हुए कहा कि स्टे वर्तमान स्थिति पर है इसलिए जिस हिस्से पर उसका कब्जा है जहां उसने मूंग की फसल बोई है अब वह हिस्सा अगले फैसले तक उसके पास ही रहेगी. जमीन पर अपना दबदबा बनाएं रखने के लिए कबीर के चारों जवान बेटे खेत में टेंट लगाकर रहने लगे. इतना ही नहीं कबीर की कई आपराधिक प्रवृति के लोगों से दोस्ती थी, उसने उन्हें भी खेत की सुरक्षा के लिए अपने साथ रख लिया.
मामला जितना गंभीर था पुलिस ने उतनी गंभीरता से नहीं लिया. जांच के नाम पर पुलिस ऊपरी तौर पर जांच करके लौट आई. न लापता सुनील और अनिल को खोजने का प्रयास किया गया और न ही आरोपियों को पकड़ने की कोशिश की गई. जबकि विवादित जमीन पर टूटे पड़े वाहन और चारों ओर बिखरा खून इस बात को साफ जाहिर कर रहा था कि दोनों पक्षों में जमीन को लेकर झगड़ा किस खतरनाक स्तर पर हुआ था. इधर लोगों को जब सुनील और अनिल के अगवा होने की खबर लगी तो दूसरे दिन पूरा शहर सड़क पर उतर आया. उसके बाद कबीर और उसके बेटे तथा अन्य के खिलाफ मामला दर्ज कर लापता हुए सुनील और अनिल की तलाश शुरू की गई. पुलिस की लापरवाही की वजह से लोगों का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था. सुनील और अनिल को अगवा किए 72 घंटे बीत चुके थे, लेकिन अब तक उनका कुछ पता नहीं चला था. पुलिस ने घटना के मुख्य आरोपी कबीर और उसके बेटे को हिरासत में लेकर पूछाताछ कर रही थी, पर उन्होंने अपना मुंह नहीं खोला था. जैसे-जैसे समय बितता जा रहा था, किसी अनहोनी की आशंका को लेकर लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा था.
जांच के दौरान पुलिस को गांव के कुछ लोगों ने दबी जवान में बताया कि बड़ी साजिश के तहत कबीर ने ही दोनों भाईयों को मामला सुलझाने के लिए गांव बुलाया था, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि दोनों भाई अपने साथ लोगों को लेकर कबीर से कब्जा छीनने की नीयत से आएं थे. पुलिस ने जब इस बारे में घायल अवस्था में थाना पहुंचे लोगों से पूछताछ कि तो उन्होंने बताया कि 11 बजे के आसपास जब हम लोग खेत पर पहुंचे कबीर और उसके बेटों के अलावा कुछ अन्य लोग पहले से ही वहां पर मौजूद थे. जैसे ही उन्होंने हमे देखा हम पर हमला कर दिया. उन्होंने हमें बिजली के खंबे से बांध दिया और बुरी तरह से पीटने लगे. यह देखकर आसपास के खेतों में काम करने वाले कुछ लोग हमें बचाने भी आए तो कबीर और उसके बेटों ने उनके साथ भी मारपीट की. इस दौरान हमारा एक साथी वहां से भागने में कामयाब हो गया. उन्होंने बाकी बचे लोगों को बांधकर एक टवेरा में डाल दिया और गांव में ले गए. जहां उन्होंने अपना दबदबा दिखाने के लिए सुनील और अनिल की बुरी तरह से पिटाई की और उनका गांव में जुलूस भी निकाला. यहां से आगे एक जगह गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया. तब उन्होंने हम सभी को वहीं पर छोड़ दिया, पर एक दूसरी गाड़ी में बुरी तरह से घायल सुनील और अनिल को डालकर अपने साथ ले गए.
घटना के दौरान बचकर पुलिस के पास आए लोगों ने जो कुछ बताया उसे सुनकर परिवार वालों के साथ-साथ पुलिस की चिंता भी बढ़ गई. पुलिस ने आरोपी पक्ष के कुछ लोगों को अपने हिरासत में ले लिया था और सख्ती से पूछताछ की, लेकिन पुलिस अब तक उनसे अगवा किए दोनों के बारे में कुछ भी उगलवा नहीं पाई थी. पुलिस फारार आरोपियों की तलाश आसपास के जिलों में सरगर्मी से कर रही थी. इसका नतीजा यह हुआ कि पुलिस के हाथ निखिल तिवारी लग गया. निखिल कबीर का जिगरी दोस्त है. उस पर पूर्व में कई अपराध दर्ज हैं. पूछताछ के दौरान निखिल पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा. उसने बताया कि वह इस झगड़े के बारे में कुछ नहीं जानता, लेकिन पुलिस को उसकी बातों पर यकीन नहीं था क्योंकि पुलिस को निखिल का पर्स विवादित जमीन पर पड़ा मिला था, जहां दोनों पक्षों में मारपीट हुई थी. मारपीट के दौरान निखिल का पर्स वहां गिर गया था. अपना पर्स देखकर निखिल ने घटना में शामिल हाने की बात मान ली, लेकिन सुनील और अनिल के बारे में कोई भी जानकारी होने से मना किया. उसकी बातों से पुलिस समझ चुकी थी कि निखिल को घटना के बारे में बहुत कुछ पता है. वह उससे लगातार पूछताछ करती रही, आखिर में गिरफ्तारी के चैथे दिन निखिल पुलिस के आगे टूट गया और उसने बताया कि आरोपियों ने घटना वाले दिन ही सुनील और अनिल की हत्या कर दी थी और उनके शव को ले जाकर घने जंगल में फेंककर उसके ऊपर कटीली झाड़िया आदि डाल दिया था, जिससे किसी की निगाह उन पर न पड़े. (कथा काल्पनिक पर आधारित है)
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