Crime Story in Hindi : पति ने की प्रेमी की हत्या

Crime Story in Hindi : पति ने की प्रेमी की हत्या
Crime Story in Hindi : पति ने की प्रेमी की हत्या


Crime Story in Hindi : पति ने की प्रेमी की हत्या


तारापुर नाम का एक छोटा सा गावं है। शाम का वक्त था। पुलिस स्टेशन में काशी पहुंचा। उसने पुलिस को बताया, उसके गांव में रहने वाले भाऊ ने अपनी पत्नी तथा एक बच्चे की हत्या कर दी है और भाऊ ने खुद को भी चाकू से घायल कर आत्महत्या करने की कोशिश की है। पुलिस ने डबल मर्डर के मामले को गंभीरता से लिया और तुरंत घटनास्थल पर पहुंचे।

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची तो वहां काफी भीड़ लगी हुई थी। पुलिस को देखते ही भीड़ काई की तरह फटने लगी। हत्या घर के अंदर हुई थी। पुलिस दल ने घर के अंदर प्रवेश किया। घर के अंदर खून से लथपथ दो लाश नग्नावस्था में पड़ी हुई थी। दोनों के शरीर पर कपड़ा नही था। कोने में भाऊ पिंगले भी घायलावस्था में पड़ा हुआ तड़प रहा था। उसके शरीर के कई स्थानों से खून बह रहा था। पुलिस को देखते ही भाऊ ने चिल्ला-चिल्ला कर कहां, ‘‘साब, मैंने दोनों का खून किया है। साब, मुझे गिरफ्तार कर लो। मुझे फांसी पर चढ़ा दो। साब मैंने दोनों को खतम कर दिया मेरे को मुझे गिरफ्तार कर लो।’’ वह बारबार यहीं बात दोहराए जा रहा था।

पुलिस ने उसे चुप रहने का इशारा किया तो वह एक कोने में चुपचाप बैठ गया। पुलिस ने घटनास्थल का बारिकी से निरीक्षण किया। इसके बाद दोनों लाश का पंचनामा बनाकर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताला भेंजवा दिया।

तारापुर गांव में रहने वाले भाऊ पिंगल की शादी पास के ही गांव की नंदाबाई के साथ हुई थी। नंदाबाई दिखने में काफी खूबसूरत थी। नंदाबाई भाऊ के साथ काफी खुशी से रह रही थी।



गांव के जवान लड़के उसकी ख्ूबसूरती की झलक पाने के लिए सड़क किनारे खड़े रहते थे। जो युवक जरा साहसी किस्म के थे वे नंदाबाई को भाभी-भाभी कहकर उसके साथ मजाक भी करते थे। नंदाबाई भी कम नहीं थीं उनके मजाक का बूरा नहीं मानती थी। उन्हें मजाक का जवाब वह भी मजाक में ही देती थी। ऐसा करने में नंदाबाई को मजा भी आता था।

भाऊ अपने काम से मतलब रखता था। दो बच्चों के हो जाने के बाद तो मानों वह और अधिक मेहनत करने लगा था। वह मेहनत कर खेतों में अधिक से अधिक अन्न उगाना चाहता था। जिससे उसका परिवार अधिक खुशहाल बना रहे। अधिक मेहनत की वजह से वह काफी थक जाता था। षाम को घर आकर हाथ मुंह धोकर खाना खाता और फिर सो जाता था। उसे पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाने में रूचि नहीं रह गयी थी। जिसकी वजह से पास में लेटी नंदाबाई को सारी रात करवटें बदल-बदल कर काटनी पड़ती थी। दिन तो किसी तरह से बच्चों की देखभाल में कट जाता था, पर रात उसके लिए भारी पड़ती थी। कभी-कभी उसके मन में आता कि अपनी चाहत को वह पति को बतायें पर डरती थी कि कहीं उसका पति इसके लिए बूरा न मान जाये। क्योंकि भारतीय पत्नी अपनी पति से सेक्स संबंध के लिए कहने का साहस नहीं कर पाती थी। इसकी वजह पति कहीं बूरा न मान जाएं। नंदाबाई खुद के मन को सांत्वना देती रही कि षायद उसके पति में सुधार आ जायेगा, लेकिन कोई सुधार नहीं आया।

भाऊ के घर के पास ही काषी अपनी पत्नी सोनाबाई और दो जवान लड़कों के साथ रहता था। काषी मुंबई में काम करता था। वह सप्ताह में एक दिन के लिए अपने गांव आया करता था। काषी और भाऊ के बीच करीबी संबंध था। दोनों परिवार के लोग अक्सर एकदूसरे के घर में आते जाते रहते थे। भाऊ को कभी कोई खास सामान मंगवाना होता था तो वह काषी के हाथों मंगवा लेता था। काषी बिना किसी संकोच के सामान लाकर दे दिया करता था।

काषी का लड़का श्याम कोई काम नहीं था। वह गांव में इधर-उधर घुमकर अपना टाइम पास किया करता था। वह अक्सर भाऊ के घर पर भी जाया करता था। भाऊ तो घर पर नहीं रहता था उसकी पत्नी नंदाबाई ही रहती थी। वह जब भी नंदाबाई के घर पर जाता। उससे बात करने की बजाय उसे निहारता रहता था। श्याम मानों उसकी खूबसूरती में डूब जाना चाहता हो।

ऐसे भी श्याम, नंदाबाई की खूबसूरती पर मर मिटा था। वह मन ही मन नंदाबाई को प्यार करने लगा था। नंदाबाई और उसकी आयु में आठ-दस साल का अंतर था लेकिन श्याम  इस अंतर को कुछ नहीं समझ रहा था। एक दिन मजाक ही मजाक में श्याम  ने अपनी मुहब्बत का इजहार नंदाबाई से कर दिया। षायद नंदाबाई का झुकाव भी श्याम  की तरफ था इसलिए उसने मुस्कराकर नजरें झुका कर उसकी मुहब्बत को कबूल कर लिया। श्याम  इस मामले में अनाड़ी था और की इस भाषा को समझता नहीं था। नंदाबाई ने मुंह से न बोल कर आंखों से कहा था। इसलिए वह समझ नहीं पाया। बेचारा निराष होकर वहां से चला गया।



उसे रात भर उसे नींद नहीं आयी। वह सोचने लगा नंदाबाई ने उसके मोहब्बत को ठुकरा दिया है। रात किस तरह से करवट बदल कर काटी, उसे ही पता नहीं। उसने रात में ही मूड बना लिया। सुबह उठकर नंदाबाई के पास जाएगा। एक बार फिर उसके सामने अपने प्यार का इजहार करेगा। और उसके मुंह से हां या ना में उत्तर सुनना चाहेगा। अगर ना में उत्तर मिला तो वह आत्महत्या कर लेगा।

सुबह जब वह नंदा बाई के घर पर पहुंचा भाऊ घर पर था। वह खेत पर जाने की तैयारी कर रहा था। भाऊ ने श्याम से हालचाल पूछा और खाना खाकर जाने के लिए कहां, श्याम वहीं बैठा कभी नंदाबाई से तो कभी भाऊ से बात करता रहा। थोड़ी देर में जब भाऊ काम पर चला गया। एकांत पाकर उसने नंदाबाई से पूछा, ‘‘भाभी तूने मेरे कल वाली बात का जवाब नहीं दिया। आज मैं विचार बनाकर आया हूं कि आज जवाब सुनकर ही जाऊंगा, और यदि जवाब नहीं मिला तो ......’’

श्याम अपनी बात को पूरा करता इसके पहले ही नंदाबाई ने कहा, ‘‘आत्महत्या कर लेगा, यहीं न।’’

‘‘अरे, भाभी तूने मेरी दिल की बात कैसे जान ली?’’

‘‘मैं तो यह भी जानती हूं कि मेरे राजा रात को तू नहीं सो पाया है। आंखों के सामने मेरा ही चेहरा नजर आ रहा था। क्यो सच कह रही हूं न।’’ नंदाबाई ने आंखे मटकाते हुए कहां तो श्याम  के दिल में हलचल सी होने लगी।

‘‘भाभी तुम सब कुछ जान गयी हो तो फिर जवाब क्यों नहीं देती।’’

‘‘मेरे राजा प्यार करते हो लेकिन प्यार की भाषा पढ़नी नहीं आती। बहुत सी बातों का जवाब देना जरूरी नहीं होता है। आंखों की भाषा से पढ़ लेना पड़ता है।’’

‘‘मंै भी स्साला इतना बड़ा बेवकूफ.... प्यार की भाषा को पढ़ नहीं पाया।’’ इतना कहते हुए उसने नंदाबाई को बाहों में लपेट लिया।

‘‘रूको, इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं, पहले दरवाजा बंद कर लूं।’’

दरवाजा बंद करने के बाद दोनों सामाजिक रिश्तों को दरकिनार कर वासना के अंधे कुएं में गोते लगाने लगे। हालांकि दोनों के बीच उम्र का गहरा अंतर था। नंदाबाई काफी दिनों से सेक्स सुख से वंचित थी। श्याम कच्ची उम्र का जवान छोरा था। उसकी मर्दानगी उसके पति के आगे बेहद सुख देेने वाली लगी। श्याम ने पहली बार सेक्स का आनंद लिया था। इसलिए नंदाबाई की हुस्न की ताजगी में खोता चला गया। दोनों ने जमकर भरपूर मजा लिया। दोनों काफी देर तक एक दूसरे में लिप्त रहे इसके बाद लस्तपस्त होकर पसीने से सरोबार होकर अलग हो गये।



दोनों के बीच जब अवैध संबंध का सिलसिला एक बार षुरू हुआ तो रूकने का नाम नहीं लिया। जब भी मौका मिलता दोनों अपने तन की प्यास बुझा लेते थे। दोनों सेक्स की आग में अंधे हो गए थे। इसलिए दोनों जब भी मिलते उनके सामने सिर्फ सेक्स ही एक बात होती थी। जैसे वे हमेशा सेक्स में लिप्त ही रहना चाहते थे।

एक दिन दोपहर की बात हैं भाऊ अचानक घर पर आया तो उसने नंदाबाई और श्याम को एक-दूसरे की बाहों में अस्तवस्त हालत में देख लिया। अपनी पत्नी को एक जवान छोरे के साथ अपने घर में रंगरलियां मनाते देख भाऊ का खून खौल उठा। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि वह जो देख रहा है वह सच है या गलत। वह कुछ समझ पाता इसके पहले श्याम कपड़ा लेकर पीछे के दरवाजे से फरार हो गया।

उसके जाते ही जैसे भाऊ को होष आया हो। उस वक्त उसके हाथ में बैल को मारने वाली चाबुक थी। भाऊ ने उसी चाबुक से नंदाबाई की अच्छे से पीटाई कर दी। चाबुक की मार खा कर नंदाबाई ने अपने पति के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए कहां, वह आइंदा ऐसा गलत काम नहीं करेगी। मारते-मारते जब भाऊ थक गया तो उसने मारना बंद कर दिया। और वहां से चला गया।

कुछ दिनों तक भाऊ ने नंदाबाई से बात नहीं की। आखिर में भाऊ ने नंदाबाई को माफ कर दिया। भाऊ ने उसे माफ तो कर दिया था उसके साथ ही उस पर विष्वास करना छोड़ दिया। अब वह उसे अपने साथ ही खेत पर ले जाया करता था। साथ में ले भी आया करता था। ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा।

नंदाबाई को जवान छोरे का स्वाद लग चुका था। वह श्याम को भूल नहीं पा रही थी। वह हमेषा श्याम से मिलने की तलाष में रहती थी। इधर श्याम की हालत भी खराब थी। उसे स्त्री सुख का जो आनंद मिला था, उसे भूला नहीं पा रहा था। नंदाबाई से मिलने केेे लिए वह बेचैन था। वह मौके की तलाष में था पर भाऊ की वजह से उसे मौका नहीं मिल रहा था।

भाऊ नंदाबाई को धीरे-धीरे छूट देने लगा था। नंदाबाई ने इसका फायदा उठाया और मौका देखकर वह श्याम से मिलने जंगल में जाने लगी। वहां पर दोनों संबंध बनाकर लौट आते। यह बात गांव वालों को पता चल गयी तो इसकी चर्चा होने लगी। आखिर में भाऊ के कान में गयी तो वह बौखला गया। वह नंदाबाई के साथ मारपीट करता इसके पहले ही नंदाबाई ने उसे किसी तरह समझा दिया। नंदाबाई समझ गयी कि आज तो उसने भाऊ को समझा दिया है लेकिन यदि वह श्याम से जंगल में मिलती रही तो यह बात फिर एक बार भाऊ के कान में पहुंच जायेगी। तब उसकी जान की खैर नहीं।

जंगल जाने से बचने के लिए नंदाबाई ने श्याम को अपने ही घर पर रात में बुलाने लगी। रात में जब भाऊ काम से आकर दारू पीने के बाद खा पीकर आ से सो जाता था। तब वह श्याम को पीछे के दरवाजे से अपने घर पर बुला लेती थी। दूसरे कमरे में जाकर श्याम के साथ सुबह तक आनंद लेती थी। श्याम सुबह-सुबह उठकर अपने घर चला जाता था। दारू पीकर खाना खाने के बाद भाऊ जो सोता तो सुबह ही उठता था। उसे कुछ पता ही नहीं चलता था कि उसके घर में उसके सोने के बाद दुसरे कमरे में दूसरा ही कार्यक्रम चल रहा है।

>एक रात को न जाने कैसे अचानक उसकी नींद खुल गयी। उसने अपने पास बिस्तर पर हाथ देकर देखा तो नंदाबाई उसके पास नहीं थी। उसे दूसरे कमरे से कुछ खुसर-फुसर की आवाजें आ रही थी। वह धीरे-धीरे बिस्तर से उठा और दबे पांव दूसरे कमरे में जा पहुंचा। कमरे में अंधेरा था। इसके बावजूद वह समझ गया कि यह जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ चला रहा। उसका खून खौल गया।

भाऊ ने घर में रखा हुआ बड़ा-सा चाकू उठाकर ले आया। उसने कमरे में पहंुचकर आव देखा न ताव दोनों पर टूट पड़ा और चाकूओं से लगातार वार करने लगा। कमरे में अंधेरा होने के बावजूद चाकू दोनों के शरीर पर लगी। भाऊ पागलों की भांति दोनों पर चाकूआंे से वार करने लगा। दोनों के मुंह से दर्दनाक चीख निकली। खून का फव्वारा फूट पड़ा। दोनों चीखने चिल्लाने लगे। कोई उन्हें बचाने के लिए नहीं आया। थोड़ी ही देर में दोनों वहीं गिरकर तड़पनते रहे। आखिर में शांत हो गये।

शारीरिक सुख के लिए एक हंसता खेलता परिवार बर्बाद हो गया। शारीरिक सुख की वजह से जान भी गई और मान सम्मान भी।

किसी की भी जिंदगी में प्रेम त्रिकोण बड़ा खतरनाक होता है। यहीं प्रेम त्रिकोण में एक सीधे सादे इंसान को हत्यारा बना दिया और मासूम बच्चों को अनाथ। हत्या करने के बाद भाऊ आज जेल की सलाखों के पीछे हैं।

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(कथा सत्य घटना पर आधारित है. कहानी में दिए सभी के नाम व पता काल्पनिक है)

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