AIDS: एड्स पीड़ित विधवा के साथ गलत व्यवहार | Wrong treatment of AIDS victim widow

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AIDS: एड्स पीड़ित विधवा के साथ गलत व्यवहार | Wrong treatment of AIDS victim widow 

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिला के एक गांव की रहने वाली कुसुम (काल्पनिक नाम) की शादी कम उम्र में ही हो गई थी. शादी के कुछ समय बाद उसका पति कमाने के लिए पंजाब चला गया. इस बीच वह गांव आता जाता रहा.

पिछले साल जब वह गांव आया बीमार था. काफी इलाज के बाद जब वह ठीक नहीं हुआ तो उसे बनारस  लाकर जांच करवाने पर एचआईवी पाजिटिव बताया.

कुछ महिनों में उसका पति चल बसा. कुसुम भी एचआईवी पाजिटिव है. यह बीमारी उसे अपने पति से लगी है. पर यह बात उसके ससुराल वाले मानने के लिए तैयार ही नहीं है.

आज भी एड्स को लेकर लोगों में काफी भम्र है. जिसके चलते एड्स संक्रमित महिलाओं के साथ गलत व्यवहार किया जा रहा है. उन पर दोषारोपण करके उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है. समाज के लोगों को इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. ताकि पीड़ित विधवाओं के साथ ज्यादती रूक सके. 

पति की मृत्यु के बाद कुसुम को उसके ससुराल वालों द्वारा जिस तरह प्रताड़ित किया जाता है. उसका शब्दों में बयान करना मुश्किल है.

यहीं हाल रजिया, विमला, सुनीता (सभी काल्पनिक नाम) का है. इनके त्रासदी भरी कहानी भी कुसुम के जीवन की कहानी से मिलती है. इनके पति भी इन्हें सौगात में खतरनाक बीमारी एड्स देकर इस दुनिया को अलविदा कर गये है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में एड्स से कई दर्जन पुरूषांे की मष्त्यु हो चुकी है. इनमें से अनेक महिलाएं अपने पति द्वारा दी गई खतरनाक बीमारी एड्स का दंश झेल रही है. दुखद बात यह है कि इनके बच्चे जिन्होंने अभी तक दुनिया भी ठीक से नहीं देखा है वे भी एचआईवी पाजिटिव का शिकार है.

एड्स से पीड़ित महिलाएं समाज में ही नहीं अपने ससुराल वालों के लिए भी आंख की किरकिरी बनी हुई है. एचआईवी संक्रमण के लिए भले ही ज्यादातर महिलाएं जिम्मेदार न हो पर इसका ठीकरा उन्हीं के सिर फोड़ा जाता है.

नेशनल काउंसिल आफ एप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च द्वारा किए गए आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मणिपुर, नागालैंड, उत्तरप्रदेश आदि राज्यों के ग्रामीण और शहरी इलाकों में किए गए अध्ययन में यह पता चला है कि पति के एड्स की वजह से महिलाओं को परिवार और समाज के नफरत, घृणा, भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है.

रिर्पोट के मुताबिक 85 प्रतिशत महिलाओं को एड्स उनके पति की वजह से मिला है. इसके बावजूद परिवार और समाज पति और पत्नी को एड्स होने के लिए महिला को जिम्मेदार मानते हैं. हालाकि इस बारे में श्वेत कणिकाओं की गिनती से पता लगाना संभव हो गया है कि पति और पत्नी में से किसके शरीर में यह वायरस ज्यादा दिनों से पल रहा है.


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घर के पुरूष सदस्य में एड्स होने की बात पता चलते ही उसका इलाज शुरू कर दिया जाता है. परिवार वाले उसके इलाज के लिए अपने जायजाद तक को बेच देते हैं. लेकिन बीमार बहू के इलाज की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है. पैसों की कमी का बहाना बनाया जाता है.  यही नहीं उसका घर से बहिष्कार किया जाता है. उसे  मरने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है.

पति की मौत के बाद उस विधवा की परेशानियां और बढ़ जाती है. एक तरफ समाज और परिवार के घष्णा का दंश झेलना पड़ता है. दुसरी ओर अपना और बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है.

बीमारी का मंहगा इलाज वह करवा नहीं सकती तिलतिल हर रोज मरती रहती है.  उनके अंदर एक खौफ हमेशा बना रहता है, कहीं जिंदगी उनका साथ न छोड़ दें. ऐसे में बिन मातापिता के बच्चों का क्या होगा?

रिपोर्ट के अनुसार 10 फीसदी महिलाओं को अपने पति की मौत के बाद ससुराल में रहने की इजाजत मिलती है. अन्य घरों में पति की अर्थी निकलते ही सभी रिश्तेनाते तोड़ देने का फरमान सुनने को मिलता है. उसे पति की जायजाद से भी मरहूम कर दिया जाता है.

चैन्नई स्थित एक गैर सरकारी संस्थान केयर द्वारा किए गए सर्वेक्षण में पता चला है कि एड्सग्रस्त पति की मष्त्यु के बाद 48 प्रतिशत विधवा के साथ घर वालों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है. उस पर आरोप लगाया जाता है कि इसी की वजह से ही एड्स का भूत उनके घर में दाखिल हुआ और बेटे को निगल गया. परिवार के लोगों व रिश्तेदारों द्वारा गंदीगंदी बातें कहीं जाती है.

विधवा के साथ र्दुव्यवहार किया जाता है. उसे अपमानित किया जाता है, उसके साथ मारपीट की जाती है. कभीकभी बेरहमी से पिटा जाता है. खाना नहीं दिया जाता है. जिनके बच्चे नहीं होते है उन महिलाओं को भी काफी अपमान का घूट पीना पड़ता है.

रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में एड्स के रोगियों की संख्या 4 करोड़ से अधिक है जिसमें महिलाओं की संख्या 40 प्रतिशत है. भारत में लगभग 52 लाख लोग एड्स से पीड़ित है. जिसमें महिलाओं की संख्या 30 प्रतिशत है. भारतीय महिलाओं में एड्स फैलने की सबसे बड़ी वज़ह गरीबी, अशिक्षा, जागरूकता की कमी, जल्दी शादी, वेश्याव्ति, महिलाओं की तस्करी और एड्सग्रस्त पति है.

संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिर्पोट के अनुसार, दुनियाभर में एचआईवी संक्रमण के शिकार होने वाले और एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है. लेकिन अब भी इससे पीड़ित लोगों के प्रति भेदभाव बरते जाने और समाज में इस बीमारी के बारे में एक खास किस्म का नजरिया रखने के कारण एड्स के शिकार लोगों की दिक्कतें कम नहीं हो रही है.

एड्स पर कार्य कर रही संस्था पाजीटिव पीपुल्स फाॅर केयर एण्ड सपोर्ट के अनुसार एड्स पीड़ित विधवाओं के साथ भेदभाव करना, मारपीट करना, तिरस्कार करना, उनकी उपेक्षा करना, उनका अपमान, सम्पत्ति से बेदखल करना समाज के लिए कलंक है.

समाजशास्त्री सिध्दनाथ का कहना है, एड्स से संक्रमित महिलाओं का क्या दोष जो उन्हें सजा दी जाए. उन्हें सताना अमानवीय व्यवहार है. समाज के लोगों को ऐसा करने से बचना चाहिए. सरकार को भी चाहिए इन विधवाओं के साथ जादती न हो इसके लिए सख्त कानून बनाना चाहिए. जिससे अपनी बची हुई जिंदगी आराम से गुजार सके.

क्या है जरूरी What is important

  • एड्स के मरीज को हेय दृष्टी से ना देखा जाए.
  • एड्स पीड़ित विधवा के साथ गलत व्यवहार करने वालों के लिए सख्त कानून बनें.
  • एड्स को लेकर लोगों में फैली गलतफहमी के बारे में भी प्रचार किया जाए.
  • स्वंयसेवी संस्थाओं की भागीदारी बड़े.
  • महिलाओं की शिक्षा एवं सशक्तिकरण पर जोर दिया जाए.  (Copyright – Maanoj Mantra ) 
Web Title: AIDS: एड्स पीड़ित विधवा के साथ गलत व्यवहार | Wrong treatment of AIDS victim widow  
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