Today and tomorrow : संबंधों की बलि

संबंधों की बलि


वरूण काफी थक गया था. डियुटी पर काफी काम था. दिनभर में एक मिनट की भी फुर्सत नहीं मिली. वह थकामांदा अपने घर पर पहुंचा. पंखा चला कर वह बैठ गया. उसकी पत्नी अपने तीन बच्चों को लेकर अपने भाई के घर गयी हुई थी. पंखे के नीचे बैठ कर उसने सोचा. वह थोड़ी देर आराम करने के बाद अच्छे से नहायेगा. इसके बाद चाय बनाकर पीयेगा और बाद में खाना बनायेगा.
इतने में उसके कमरे के दरवाजे पर आवाज हुई. वरूण  ने कहां, ‘‘दरवाजा खुला हैं...’’
दरवाजा खोल कर अंदर किरायेदार की बीबी सुहानी चाय लेकर खड़ी थी.
‘‘लगता है आज आप काफी थक गए हैं. लीजिए चाय पी लीजिए.’’
‘‘अरे, इसकी क्या जरूरत थी. मैं खुद चाय बनाने वाला था.’’ वरूण ने कहां.
‘‘भाभी होती तो आपको चाय मिल ही जाती.’’
ऐसा मेरी किस्मत में कहां, .... वह ठहरी गांव देहात की, उसको यह सब समझ कहां.... जब देखो तब काम में ही जुटी रहती हैं. अपने पति की ओर उसका ध्यान कहां है. राजकुमार किस्तम वाला है जो तुम जैसी खूबसूरत और समझदार पत्नी मिली.’’ वरूण ने कहां.



‘‘आप भी काफी बात बना लेते हैं. चलिए चाय पी लीजिए. नहीं तो चाय ठंडी हो जायेगी.’’ सुहानी ने चाय का गिलास बढ़ाते हुए कहां.
सुहानी ने वरूण से कहां, वह रात के खाने की तैयारी कर चुकी हैं. आज उसके हाथ का बना खाएं.’’ इतना कह कर सुहानी अपने कमरे में चली गयी.
वरूण चाय की चुस्कियां लेने लगा. वरूण ने अपने बंगले में खाली पड़े एक रूम को राजकुमार वर्मा जो ड्राइवर का काम करता था, उसे किराए से दे रखा था. राजकुमार आठ-दस दिन घर के बाहर रहता था. आठ-दस दिन बाहर रहने के बाद जब वह घर पर आता तो दो-चार दिन रहता फिर वह ट्रक लेकर चला जाता था.
वरूण अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था. राजकुमार का परिवार और वरूण का परिवार कुछ दिनों में ही घुल मिल गया. राजकुमार चिंता से मुक्त था कि वरूण का परिवार होने की वजह से उसे अपने परिवार की चिंता नहीं थी.
वरूण ने चाय पीने के बाद बाथरूम में जाकर नहाया. नहाकर वह बाथरूम में से सिर्फ अन्डर वियर में ही सामने कमरे में आया. वहां देखा सुहानी खड़ी थी. वह सुहानी को गौर से देखने लगा. सुहानी भी वरूण को बड़े गौर से देख रही थी. दोनों बड़ी देर तक आंखों में आंखे डाले तांकते रहे. अचानक वरूण को ध्यान आया वह सिर्फ अन्डर वियर में है तो वह अंदर कमरे की ओर भागा.
वरूण को अंदर कमरे में भागते देख सुहानी खिलखिला कर हंस पड़ी. वरूण अंदर कमरे में जाकर टावेल लपेट कर बाहर आया. सुहानी अब भी मुंह पर हाथ रख कर हंस रही थी.
‘‘क्या बात है. इतनी हंस क्यों रही हों?’’ वरूण ने उससे पूछा.
‘‘आप जिस तरह से भागे... उसे देखकर मुझे हंसी आ गयी.’’ सुहानी ने कहां.
‘‘इसमें हंसने की क्या बात है, भई किसी औरत के सामने नंगे बदन आना अच्छी बात हैं क्या.’’
‘‘क्या बाॅडी है, वाह! भाभी तो खुश हो जाती होगी.’’ सुहानी ने आंख मटका कर कहां.
सुहानी की बातों को समझते हुए वरूण ने जवाब दिया,’’ भाभी की बात छोड़ ...तेरे को कैसा लग रहा है.’’
‘‘तू तो पूरा सलमान लगता है तेरे को पाती तो मैं निचोड़ लेती.’’ सुहानी ने आंख मारते हुए कहां.
‘‘सच कहंू सुहानी जिस दिन से तेरे को देखा है मेरे रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो गया हैं.‘‘ बेधड़क सुहानी से लिपटते हुए कहां.



‘‘जानेमन मेरा भी यही हाल हैं. भाभी के होने के वजह से मैं कुछ नहीं कर पाती थी.’’ सुहानी ने वरूण को कसकर जकड़ते हुए कहां.
वरूण ने सुहानी को बाहों में उठाया और बेड पर ले जाकर पटक दिया. उसके हाथ कमर के नीचे रेंगने लगे तो सुहानी ने कहां, इतनी जल्दी क्या है आज रात पड़ी है. खाना खा लो. उसके बाद सारी रात खेल खेलना.’’
‘‘यह तो मेरे लिए सजा हो जायेगा.’’
‘‘सजा में ही तो मजा हैं. ’’ इतना कह कर सुहानी बेड से उठी वरूण के दोनों गालों पर जोरदार किस जड़कर चली गयी. थोड़ी देर में वह खाना लेकर आयी.
उसने बताया. उसने बच्चे को सुला दिया है. अब वे दोनों एक साथ बैठ कर खायेंगे. सुहानी ने मटन बनाया था. मटन देखकर वरूण ने कहां, ‘‘खाने के पहले एक-एक पैग लगा लेते हैं.’’
‘‘नहीं मैं शराब नहीं पीती, तेरे को पीना है तो तू पी लें.’’
वरूण ने दो गिलास में पैग बनाया. सुहानी की ओर बढ़ाते हुए कहां, ‘‘मैं कभी अकेला नहीं पीता.... बाहर दोस्तों के साथ घर पर तेरी भाभी के साथ ..... आज तू आयी हैं.’’
‘‘नहीं, मैंने कभी नहीं पिया है.... सुहानी ने कहां.
‘‘झूठ बोल रही है. अरे तेरा पति ड्राइवर है और वह तेरे को नहीं पिलायेगा. मैं नहीं मानता.’’
‘‘मेरा पति ऐसा नहीं है. वह किसी बात की जिद्द नहीं करता है.’’
‘‘एक छोटा सा पैग पी ले. आज की रात तेरे को जिंदगी का अलग मजा मिल जायेगा. चल उठा.... आज की रात तेरे और मेरे प्यार के नाम.’’
बार-बार कहने पर सुहानी ने एक गिलास उठा लिया और एक ही घूंट में पूरा गिलास खत्म कर दिया.
‘‘अरे, तू तो पूरी बेवड़ी है.’’ वरूण ने गिलास से एक घूंट पीने के बाद कहां.
वरूण इसके आगे कुछ बोलता, इसके पहले सुहानी ने एक और लार्ज पैग बनाया. उसे भी एक ही बार में खाली कर दिया. वरूण उसे देखता रह गया.
वरूण की ओर नशीली नजरों से देख कर बोली, ‘‘चल जल्दी से गिलास खाली कर, नहीं तो रात कम पड़ जायेगी.’’
वरूण ने जल्दी से गिलास खाली किया. दोनों ने खाना खाया और बेड पर पहुंच गये.
दोनों ने खुल्लम खुल्ला प्यार किया. दोनों भूल चुके थे कि वे दोनों शादीशुदा है. बच्चे है पति है पत्नी हैं.
दोनों ने एक कमरे में रह कर वहीं सब कुछ किया जो एक पति पत्नी के बीच होता है. वरूण सुहानी के साथ संबंध बनाकर काफी खुश था. इसकी वजह थी सुहानी ने उसका भरपूर साथ दिया था, जो उसकी बीबी नहीं देती थी. वरूण ने जोश में आकर रात में कई बार संबंध बनाया.
यही हाल सुहानी का भी था. उसका पति आठ-दस दिन के बाद घर लौट कर आता, शराब का पैग लगाता और उसके ऊपर चढ़कर किसी तरह से एक-दो झटके मारता और एक तरफ लुढ़क जाता था. कुछ ही देर में सारा खेल खत्म जाता और वह जल बिन मछली की तरह तड़पती रह जाती. वरूण ने आज उसे इस तरह से मसला कि उसे अपनी जवानी के दिन याद आ गये. उसे लगा उसके शरीर में अब जान है रोमांस हैं.



वासना का खेल समाप्त होने के बाद दोनों नंगे बदन लिपटे पड़े रहे. दोनों को रात भर नींद नहीं आयी. दोनों एक दुसरे के शरीर से खेलते रहे. वरूण की पत्नी घर पर नहीं थी. सुहानी का पति घर पर नहीं था. दोनों स्वतंत्र थे. बिंदास थे. वरूण ने कहां, ‘‘सोच रहा हूं आज डियुटी पर न जाऊं.’’
‘‘क्यों आज दिन में भी नहीं छोड़ने का इरादा है क्या ?’’ सुहानी ने वरूण की आंखो में आंखे डालकर कहां.
‘‘हां, रात में जो मजा तूने दिया है. लगता है तेरे गले में बाहों को डाल कर पड़ा रहूं.’’
‘‘तूने भी मेरे को भरपूर मजा दिया है. इसलिए मैं भी खुश हूं. तू जब तक चाहे मेरे गले में बांहे डाल कर पड़ा रह सकता है. बस मैं बच्चें को तैयार कर स्कूल छोड़ आंऊ.’’
बच्चे को तैयार कर सुहानी उसे स्कूल छोड़ कर आ गयी. दोनों के बीच एक बार फिर से वासना का खेल शुरू हुआ. ब्लू फिल्म को भी मात कर देने वाले एक से एक गेम चलता रहा. दोनो ंपस्त होने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उन्हें तब होश आया जब शाम को स्कूल से लौटकर बच्चे ने दरवाजे पर आवाज दिया.
शाम को राजकुमार आ गया. राजकुमार के आने पर सुहानी को खुशी नहीं हुई. वह सोच रही थी. राजकुमार दो चार दिन और नहीं आता तो अच्छा होता. वह वरूण के साथ मौजमस्ती तो कर सकती थी.
वरूण और सुहानी के बीच बने संबंध पर धीरे - धीरे काफी प्रगाड़ होने लगे. दोनों को ऐसा लगने लगा जैसे दोनेा एक दुसरे के बिना जी नहीं सकते. लेकिन लोकलाज और परिवार की वजह से छुप छुपकर दोनांे मिलते थे. जब राजकुमार ट्रक लेकर बाहर गांव चला जाता था. वरूण अपनी पत्नी को नींद की गोली खिलाकर सुहानी के कमरे में आ जाता था.
कहते है इश्क और मुश्क को कितना भी छिप कर किया जाये. लेकिन उसकी खुश्बू जरूर फैल जाती है. वरूण और सुहानी के संबंध की जानकारी सबसे पहले वरूण की पत्नी वर्षा को लगी. उसने इसका विरोध किया. लेकिन वरूण ने उसे डांट और तलाक देने की धमकी देकर वर्षा को चुप करा दिया.
 वर्षा ने चालाकी से काम लिया. उसने अपने पति के सामने मुंह तो नहीं खोला, लेकिन इसकी जानकारी सुहानी के पति राजकुमार को दे दी. राजकुमार ने वर्षा की बात पर विश्वास नहीं किया. उसका कहना था, जब तक वह अपनी आंखों से नहीं देख लेगा. वह विश्वास नहीं करेगा.
राजकुमार ने वर्षा को कह तो दिया था कि बिना देखे वह विश्वास नही ंकरेगा लेकिन उसके दिमाग में वर्षा की बात रेंग रही थी. उसका मन फटा जा रहा था. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. सुहानी उसके साथ इतना बड़ा धोखा कर सकती है. अगर यह बात सच निकली तो वह सुहानी के टुकडे-टुकड़े करके चील कौवे को खिला देंगा.
दुसरे ही पल उसने सोचा, सुहानी बढ़ी सीधी सादी है, उसे शैतान वरूण ने बहका कर अपने प्यार के जाल में फंसा लिया होगा. सुहानी की बजाये उसे वरूण के ही टुकड़े-टुकड़े चील कौवे को खिलाना चाहिए. इतना सोचने के बाद उसने आगे सोचा इसकी जड़ वर्षा है. स्साली अपने पति को प्यार देती तो वह दुसरी औरत के चक्कर में क्यों पड़ता. इस हरामजादी के भी टुकड़े-टुकड़े करके नदी में बहा देना चाहिए.
यह तीनों बातें उसके दिमाग में बार-बार घुम रही थी. आखिर में मन को सांतवना देते हुए उसने सोचा, सबसे पहले उसे इस बात का पता लगाना जरूरी है कि उसकी बीबी सुहानी बेवफ है यी नहीं. इसके बाद ही वह कोई कदम उठाएगा.’’
उसने सुहानी से कहां, ‘‘आज शाम को वह ट्रक लेकर वह मुंबई जा रहा है. उसे लौटने में आठ दस दिन लगेंगे. जरा संभल कर रहना.’’
राजकुमार शाम को चला गया. राजकुमार के चले जाने की जानकारी सुहानी ने वरूण को दे दी तो वरूण खुश से उछल पड़ा. उसने सुहानी से कहां वह रात को आ रहा है तैयार रहना.’’



देर रात को वरूण सुहानी के कमरे में आ गया. कई दिन हो गए थे. सुहानी से नहीं मिला था. कुछ अधिक जोश में था. सुहानी भी काफी जोश में थी. उसने जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिये और गद्दे की तरह बेड पर बिछ गयी. वरूण ने भी देर नहीं की कपड़े उतार कर जुट गया. उनका कार्यक्रम चरम स्थिति पर पहुंचने वाला था कि दरवाजे पर सांकल की आवाज आयी.
इतनी रात को कौन हो सकता हैं? दोनों चैंक गये. वरूण ने फुसफसा कर कहां, लगता है वर्षा जाग गयी होगी. तू कपड़े पहन कर दरवाजा खोल में पीछे दरवाजे से निकल जाता हूं.’’
सुहानी ने जल्दी से उठकर कपड़े पहने. इतने में फिर से दरवाजे पर आवाज हुई. सुहानी ने कपड़े पहनते हुए कहां, कौन हैं?’’
‘‘मैं राजकुमार जल्दी से दरवाजा खोल.’’
राजकुमार का नाम सुनते ही डर के मारे हाथ पैर कांपने लगे. उसने किसी तरह से अपने आप को संभाला. दरवाजा खोला.
दरवाजा खुलते ही राजकुमार कमरे के अंदर इधर उधर देखने लगा. लेकिन कमरे में कोई नहीं था.
‘‘जल्दी से बोल कमरे में कौन था? किससे बात कर रही थी.’’ राजकुमार ने पूछा.
‘‘आपको गलतफहमी हुई है. कमरे में कोई नहीं आया था.’’ सुहानी ने कहां.
राजकुमार पीछे दरवाजे की ओर गया. दरवाजा खुला हुआ था. स्साला डरपोक यहां से भाग गया है.
उसने सुहानी से कहां, जल्दी से बता दे नहीं तो हरामजादी तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा. जल्दी से बोल कमरे के अंदर कौन था?
‘‘बोल रही हूं न आपको गलतफहमी हुई है. कमरे में कोई नहीं था.’’
तभी राजकुमार की निगाह बेड पर पड़े दो अन्डर वियर पर गयी. इसमें से एक पैंटी तो तेरी है दुसरी किसकी है.’’ राजकुमार ने चीखकर कहां.
वह कुछ जवाब देती इसके पहले उसने वहां रखे चाकू से सुहानी को धमकाया. ‘‘स्याली समझती है मेरे को कुछ नहीं मालूम है तेरे और वरूण के बीच जो कुछ चल रहा है मेरे को मालूम हो गया है. तुम दोनों को रंगे हाथ पकड़ने के लिए मैं वापस लौट के आया हूं. कुत्ती कमीने मेरे नहीं रहने पर गैर मर्द के साथ सोती है. मैंने दरवाजे की दरार से सब कुछ देख लिया है. दोनों के बीच क्या चल रहा था. इतना कहते हुए उसने सुहानी पर चाकूओं से कई वार कर दिए.
सुहानी कटे पेड़ की तरह वही गिर पड़ी. खून का फब्वारा फूट पड़ा और पूरे कमरे में बिखरने लगा. सुहानी गिर कर कुछ देर तक तड़पती रही इसके बाद वह शांत हो गयी.
वहां से निकल कर राजकुमार वरूण के कमरे पर पहंुचा. उसने कई आवाज दी. चार-पांच आवाज के बाद वरूण ने दरवाजा खोला तो वह चैंक गया. राजकुमार खून से सना चाकू लिए उसके सामने खड़ा था. उसने खुद को संभालते हुए राजकुमार से पूछा. क्या बात है यह चाकू लेकर यहां क्यों आया है.’’
राजकुमार ने कहां, ‘‘तेरा खून करने के लिए.’’
अनजान बनते हुए वरूण ने कहां, ‘‘क्यों उसका खून क्यों करना चाहता है.
‘‘क्योंकि मेरी पत्नी के साथ संबंध है. उसी की सजा देने आया हूं.’’
कहते हुए उसने वरूण पर हमला कर दिया. वर्षा अपने पति को बचाने की कोशिश करने लगी, लेकिन वह न तो वरूण को बचा सकी और ना ही अपने आप को. राजकुमार ने पुलिस के सामने अपना अपराध कबूल कर लिया. उसका कहना था, उसने जो कुछ भी किया वह सोच समझ कर किया है. वेबफा पत्नी को सजा देना जरूरी था. दुसरी ओर उसे भटकाने वाले वरूण को भी इसकी सजा देना जरूरी था. लेकिन मैं वर्षा को मारना नहीं चाहता था. वर्षा अपने पति को बचाने के लिए बचाव कर रही थी. मैंने उसे काफी समझाया जब वह नहीं मानी तो मैंने उसका भी खून कर दिया.

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