Today and tomorrow : किडनेपिंग असली पर स्टाइल फिल्मी, बच्चे की किलकारी ने पहुंचाया जेल की सलाखों के पीछे



 किडनेपिंग असली पर स्टाइल फिल्मी
बच्चे की किलकारी ने पहुंचाया जेल की सलाखों के पीछे

मुंबई के घाटकोपर इलाके के एक नामचीन बिल्डर के 22 वर्षीय पुत्र अंगद (बदला हुआ नाम) बूरी तरह से सदमे में था. दरअसल एक माह पूर्व कुछ अपहरणकर्ताओं ने अंगद को उसके घर के सामने से अपहरण कर लिया था. अपहरणकर्ताओं ने उसके पिता से 2 करोड़ रूपयों की फिरौती मांगी थी. 2 करोड़ रूपये जमा करने के लिए अंगद के पिता ने उनसे समय मांगा था. अपहरणकर्ताओं ने बेफिक्र होकर उन्हें समय दे दिया था. अंगद के पिता को रूपये जमा करने में एक माह का समय लग गया. अंगद के पिता से रूपए लेने के बाद अपहरणकर्ताओं ने अंगद को जहां बंदी बनाकर रखा था, वहां से दूर मुंबई-नासिक हाईवे पर अकेला छोड़ दिया था.  

डरा सहमा अंगद वहां से किसी तरह अकेले ही अपने घर पहुंचा था. उसके घर लौटने पर माता पिता उससे लिपट कर रो पड़े. अपने जिगर के टुकड़े को सही सलामत पाकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया और भगवान को लाखलाख शुक्रिया अदा करने लगे. दूसरी ओर, पिछले एक माह से अंगद का पता लगाने में मुंबई क्राइम ब्रांच यूनिट-8 की टीम लगी हुई थी. उन्होंने उसकी तलाश में सैकड़ों जगहों पर छापामारी की थी. अंगद के सही सलामत घर लौटने की खबर मिलते ही टीम के अधिकारी तुरंत वहां पहुंचे. पुलिस अधिकारियों ने उससे पूछताछ शुरू की तो घबराहट और भय से उसकी तबीयत बिगड़ने लगी. अंगद की हालत देखकर अधिकारियों ने उससे पूछताछ करना उचित नहीं समझा. अंगद के मन में इस कदर भय समा गया था कि किडनेपर का नाम लेते ही उसकी तबियत खराब हो जाती. कई दिनों तक यह सिलसिला चलता रहा.इस बीच अंगद ने जो कुछ बताया, पुलिस ने हर बार उसके बताएं बातों में अंतर पाया. 

पुलिस समझ गई थी कि अपहरणकर्ताओं का दहशत अब भी उसके दिल और दिमाग में बैठा हुआ है. वह जब भी कुछ बताने की कोशिश करता उसके हाथ पैर कांपने लगते, माथे पर पसीना छलकने लगता था. उसने एकएक दिन किस तरह से गुजारे हंै उसकी कल्पना मात्र से ही वह भयभीत हो जाता था. आखिर में उसे नार्मल करने के लिए पुलिस ने काउंसलर की मदद ली. काउंसलिंग के बाद अंगद कुछ सामान्य हुआ. तब जाकर वह बयान दे पाया. आखिर में पुलिस ने अंगद के बयान के आधार पर 24 घंटों के अंदर अपहरणकर्ताओं की पूरी टीम को गिरफ्तार कर लिया. यह मंुबई के इतिहास में चंद केसों में से एक है जिसमें किसी किडनैपर ने अपहरण के एक माह के बाद छोड़ा था, वह भी जिंदा. अपहरणकर्ता इतने शातिर और चालाक थे कि मुंबई पुलिस को एक माह तक अपने लोकेशन का पता ही नहीं लगने दिया. 



12 मार्च को अपहरणकर्ताओं ने अंगद को उसके घर के पास से अगवा किया था. अगवा करने के बाद वे अंगद को मुंबई से दूर किसी फार्म हाउस में ले गए और वहां बंदी बना कर रखा था. हालाकि अपहरणकर्ताओं का सरगना दो वक्त अंगद के पास आता था. उसका हालचाल पूछता था. उससे किसी चीज की जरूरत के बारे में पूछता था, पर भय के मारे अंगद की हालत खराब थी. वह भय के मारे किसी चीज की डिमांड नहीं करता था. उसे तो किसी तरह से अपने घर जाने की इच्छा थी. उसे हमेशा यह चिंता सताती रहती थी कि यदि उसके पिता दो करोड़ रूपयों की फिरौती देने का वादा समय पर पूरा नहीं कर पाएं तो अपहरणकर्ता उसकी हत्या करने में मुख्व्त नहीं करेंगे. 

अपहरणकर्ता उसके साथ काफी अच्छा व्यवहार कर रहे थे. उसे हर तरह की सुविधा दे रखी थी. उससे उसके पसंद के खाने के बारे में पूछते थे. उसका हमेशा पूरा ख्याल रखते थे. समयसमय पर मोबाइल पर पिता से उसकी बात भी करवाते थे. उसके पिता हर बार फोन पर उसे आश्वासन देते थे. वे उससे कहते, पैसों का इंतजाम कर रहे हैं. जल्दी ही उसे अपहरणकर्ताओं के चंगुल से छुड़ा लेगे. उसे अपने पिता पर पूरा विश्वास था कि वे रूपयों का इंतजाम कर लेंगे, पर दूसरी तरफ डर भी था कि लोगों ने उन्हें समय पर पैसा नहीं दिया और वे रूपये जमा नहीं कर पाएं तो उसके जान की खैर नहीं. वह हमेशा सोचता रहता अपहरणकर्ताओं का कोई भरोसा नहीं, कब उनका मन बदल जाएं और कुछ भी कर बैठे. इन्हीं सब बातों को सोचसोच कर उसका दिल घबराता रहता था. 

15 दिनों तक एक जगह पर रखने के बाद उन्होंने अपनी जगह बदल दी. नई जगह पर जहां अंगद को लेकर गए थे, वह जगह भी फार्म हाउस ही था. यह जगह पहले वाली जगह से लगभग 150 किलोमीटर दूर था. यहां उसकी देखभाल के लिए दो युवक मौजूद थे, जो 24 घंटे उस पर निगाह भी रखते थे. उसे एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते थे. इस बीच एक दिन दोनों में से एक युवक उसकी देखभाल के लिए मौजूद नहीं था. दूसरे युवक को वहां ना देखकर अंगद ने मौजूद युवक से उसके बारे में पूछा तो वह व्यक्ति चुप रहा. दूसरा व्यक्ति लगातार 2-4 दिनों से वहां मौजूद नहीं था. अंगद रोजरोज वहां मौजूद युवक से अनुपस्थित रहने वाले युवक के बारे में पूछता रहता था. आखिर में एक दिन उसने अंगद को बता ही दिया कि उसकी पत्नी को लड़का हुआ है. इसलिए वह अपने लड़के को देखने के लिए गया हुआ है.

अंगद के सामान्य होने पर पुलिस ने बड़े आराम से उसे एकएक दिन के बारे में बताने के लिए कहा. अंगद सोचसोच कर पुलिस को एकएक दिन की बातें बता रहा था. इसी दौरान आखिर में उसने एक व्यक्ति के घर में बच्चा होने के बारे मंे भी बताया. यह सुनकर पुलिस की आंखे चमक उठी. बस, उन्हें एक क्लू मिल गया जिसके सहारे अपहरणकर्ताओं तक पहुंचा जा सकता है. क्राइम ब्रांच के एसीपी प्रफुल्ल भौंसले ने खास 100 स्मार्ट पुलिस वालों की टीम बनाई और उन्हें मुंबई, नवी मुंबई और नासिक के आसपास के अस्पतालों में जाकर इस बात का पता लगाने में लगा दिया कि पिछले 15 दिनों में कितने बच्चों का जन्म हुआ है. उनमें से किस महिला को लड़का हुआ है और उन बच्चों में किस बच्चे के पिता का नाम मनीष है. पुलिस टीम इस अभियान मंे लग गयी. उनकी मेहनत रंग लाई और विक्रोली स्थित एक अस्पताल में 3 अप्रैल को एक लड़के के जन्म होने के बारे में पता चला. उसके पिता का नाम मनीष दर्ज था. अस्पताल से मनीष का मोबाइल नंबर भी मिल गया. डिटेलस निकलवाने पर कुछ खास बातें पुलिस के हाथ लगी.


पुलिस ने पिछले एक माह की लोकेशन व काल डिटेल निकलवाई. रिपोर्ट देखने के बाद शक की सुई पूरी तरह से उसकी ओर घुम गई. पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे तुरंत उठा लिया. सीधे तरह से पूछताछ करने पर मनीष पुलिस को गुमराह करता रहा. पुलिस द्वारा जरा-सी टेढ़ी अंगुली करने पर अंगद किडनेपिंग की सारी कलाई खुलती चली गई. पुलिस ने किडनेपिंग के मास्टर माइंड और उसके 9 साथियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया. सभी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मनीष के यहां पैदा हुए बच्चे की किलकारी की गूंज इतनी तेज होगी कि उन्हें जेल के सलाखों के पीछे पहुंचा देगी. बयानों के आधार पर पूरे घटनाक्रम की कहानी कुछ इस प्रकार बनी. 

अंगद और उसके परिवार के लिए 11 मार्च का दिन काला दिन था, जब अंगद रात को खाना खाने के बाद रोज की तरह घुमने निकला था. अंगद रात को खाने के बाद बाइक, कार या पैदल घुमने जरूर निकलता था. उस रात साढ़े ग्यारह बजे के लगभग वह पैदल ही घुमने निकला था. अभी कुछ दूर ही गया था कि एक लाल रंग की कार उसके पास आयी. उसमें सवार चार युवक कार से उतरे और अंगद को जबरदस्ती उठाकर कार में बैठाकर वहां से फुर्र हो गए. सबकुछ इतना जल्दी हुआ कि वहां आसपास के लोगों को भी कुछ समझ में नहीं आया. रात में अंगद के न लौटने पर घर के सभी लोग परेशान हो गए. आखिर में उन्होंने तिलक नगर पुलिस स्टेशन पहुंच कर बेटे के गायब होने की शिकायत दर्ज करवा दी. अगले दिन कुछ अखबारों में बेटे के अपहरण की सूचना प्रकाशित होने पर वे काफी घबरा गए. पुलिस घटना की जांच में आगे बढ़ रही थी. तभी अंगद के पिता जो नामी बिल्डर थे उन्होंने यह कह कर पुलिस को रोक लिया कि ‘मुझे मेरा बेटा सही सलामत चाहिए, आप लोग इस मामले से दूर रहे.’ पुलिस ने उनके दर्द को समझ कर उनके सामने मामले से दूर रहने की बात कह दी, लेकिन भीतर ही भीतर जांच को जारी रखा. इस बीच मामले को क्राइम ब्रांच यूनिट-8 घाटकोपर को सौंप दिया गया. क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने चार टीमें बनाई और अपहरणकर्ताओं की तलाश में जुटी गई.  

अपहरणकर्ताओं ने अंगद के पिता से बेटे को सही सलामत  लौटाने के बदले 2 करोड़ रूपए की फिरौती मांगी थी. अंगद के पिता उन्हें 2 करोड़ देने के लिए तैयार थे, पर उस वक्त उनके पास इतने रूपये नहीं थे. इसके लिए उन्होंने अपहरणकर्ताओं से कुछ दिनों का समय मांगा, इस पर वे राजी हो गए. अंगद के पिता जोरशोर से रूपयों के इंतजाम में लग गए. अंगद के पिता इस बात की गारंटी भी मांग रहे थे कि उनका बेटा सकुशल हो. इस पर अपहरणकर्ताओं ने एक चिप में अंगद की वीडियों भेंजी, जिसमें अंगद सकुशल दिखाई दे रहा था, लेकिन वह काफी भय और दहशत में दिखाई दे रहा था. वह अपने पिता से निवेदन कर रहा था जितनी जल्दी हो सके उसे इनके चंगुल से छुड़ा लें. कुछ दिनों बाद अपहरणकर्ताओं ने फिरौती की रकम लेने के लिए फोन किया. पुलिस को इस काल की लोकेशन क्राइम ब्रांच पुलिस कार्यालय के सामने से मिली. मतलब साफ था, किडनेपर काफी शातिर थे. वह इस बात की टोह ले रहे थे कि पुलिस इस मामले में आगे कौन-सा कदम उठाने वाली है. इस तरह किडनेपर और बिल्डर में बातचीत होते होते एक माह बीत गया. इस दौरान किडनेपर ने बिल्डर को फिरौती की रकम लेकर मुंबई के पास स्थित हिल स्टेशन माथेरान बुलाया. किडनेपर ने उन्हें पार्किग में इस तरह से गाड़ी खड़ी करने के लिए कहां जिससे कार की सभी लाइट जलती रहे. उन्होंने ऐसा ही किया. 

लंबे समय तक वहां रूकने के बाद भी वहां कोई नहीं आया. आखिर में वे अपने घर लौट आए. 13 अप्रैल को किडनेपर ने बिल्डर को रकम लेकर गोरेगांव बुलाया. एक खास जगह पर पैसों से भरा बैग रखने के लिए कहा. बिल्डर ने ऐसा ही किया. बैग ले जाने के 9 घंटों के बाद अपहरणकर्ताओं ने अंगद को 2 हजार रूपये देकर नासिक में ब्रिज के पास छोड़ दिया और अपने घर लौट जाने के लिए कहा.

मनीष की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने मास्टर माइंड अजित अपराजित और उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया. अजित मेकेनिकल इंजीनियर है. उसकी पत्नी भारती वकील है. अजित पुरानी कारों की खरीदी बिक्री का कारोबार करता है. उसका मुरवाड़ में एक फार्म हाउस है. अजित का घाटकोपर में जिस जगह पर कारोबार है, वहीं पास में राकेश कनौजिया का गैराज है. यहां गाड़ियों के रिपेयरिंग का कारोबार होता है. इसी बहाने दोनों में दोस्ती हो गयी थी. इसी दौरान कनौजिया को दो लाख रूपयों की जरूरत पड़ी. उसने अजित से मांग की तो अजित ने 8 फीसदी ब्याज पर उसे 2 लाख रूपये दे दिए. कनौजिया हर माह 16 हजार रूपये ब्याज के रूप में दे रहा था, जो उसे काफी खल रहा था. इधर अजित का करोबार भी काफी मंदा चल रहा था. उसे भी पैसों की सख्त जरूरत थी. वह अपने कारोबार को ठीक तरह से बढ़ाना चाहता था. एक दिन अजित ने कनौजिया से कहां, तुम्हें ब्याज की रकम देना भारी पड़ रहा होगा. तुम एक काम में मेरा साथ दो तो हमतुम सब मालामाल हो जाएंगे. अजित ने उसे बताया कि किसी मालदार के बच्चे का किडनेप करना है और उनसे 2 करोड़ लेकर छोड़ देना है. 

अजित ने जो प्लान समझाया, उसमें कनौजिया को कोई रिस्क नज़र नहीं आया. उसने साथ देने के लिए तुरंत हां कर दिया. अजित ने दीपक साल्वे, अविनाश, विजय, गणेश, मनीष को भी इस प्लान में शामिल कर लिया. सभी मिलकर ऐसे मालदार का बेटा ढुढ़ने लगे जो आलीशान बंगले में या फ्लैट स्कीम मंे रहता हो और मंहगी कार में घुमता हो. घाटकोपर में उनकी नज़र मंहगे कार में घुमने वाले अंगद पर पड़ी. उसके बारे में पता लगाया तो पता चला कि वह नामचीन बिल्डर का बेटा है. उसका घर तिलक नगर एरिया में हैं. अंगद के बारे में अधिक जानकारी लेने पर पता चला वह कुछ डरपोक किस्म का है. वह रात को खाना खाने के बाद रोजाना घुमने जरूर निकलता है. उसे किडनेप करने का सबसे अच्छा समय रात का लगा. कई दिनों के रेकी के बाद अजित ने उसे किडनेप करने का प्लान बनाया.


11 मार्च की रात को जैसे ही अंगद घुमने निकला. उन्होंने उसे उठा लिया और सीधे मुरवाड़ के फार्म हाउस में ले जाकर रखा. जहां उसकी पत्नी भारती भी थी. इस बात का ध्यान रखा गया कि अंगद को किसी तरह से परेशान या प्रताड़ित न किया जाए. उस पर पूरा ध्यान रखा जाएं. उसके लिए खाने पीने का सारा सामान उपलब्ध करवाया गया. माता पिता को चिंता मुक्त रखने के लिए उन्होंने अंगद की बाकायदा वीडियो फिल्म बनायी और उसे परिवार के पास भेजनी शुरू कर दी. इस वीडियो क्लीप को चिप में रेकार्ड कर लिया जाता था. उसे किसी जासूसी उपन्यास की तरह माचिस की डिबिया में भर कर शहर के किसी इलाके के कचरा पेटी के पास फेंक दिया जाता था और बिल्डर को फोन द्वारा बता दिया जाता था. इतना ही नहीं मां की पीड़ा को समझते हुए उन्होंने एक सिमकार्ड भी भेंजवाया था, जिसमें पर्ची लिखी थी कि इस मोबाइल सिम कार्ड के द्वारा उसकी ओर अंगद की बात हो सकती है. हालांकि बाद में उसकी बात नहीं करवाई गई. सारा गेम किसी फिल्मी अंदाज में किया जा रहा था. 

यह इतने शातिराना ठग से किया जा रहा था कि पुलिस को एक भी क्लू नहीं मिल रहे थे. किडनेपिंग के बाद अंगद को मुरवाड़ के फार्म हाउस में 17 दिनों तक रखा गया. इसके बाद वहां से उसे नासिक के पास वाणी में एक किराये के मकान में रखा गया था. किडनेपर जितनी बार बिल्डर से बात करते थे, वह हर बार नए सिम का इस्तेमाल करते थे. ये सिम कार्ड राकेश कनौजिया ने उत्तरप्रदेश के अंबेडकर नगर शहर से फर्जी डाक्युमेंट के आधार पर लाया था. मतलब किडनेपिंग की योजना फरवरी माह में ही बन चुकी थी. इस दौरान जब उनके पास सिम कार्ड खत्म हो गए, तब कनौजिया फिर से उत्तर प्रदेश गया और नए सिम कार्ड खरीद कर लाया था.

किडनेपर ने 12 अप्रैल को फोन कर बिल्डर को रूपये लेकर आरे काॅलोनी में बुलाया, लेकिन उसी दिन अजित की गर्भवती पत्नी को कुछ परेशानी हो जाने की वज़ह से उसे अस्पताल ले जाना पड़ा. ऐसे में उसने अपना प्लान बदल दिया और बिल्डर को आने के लिए मना कर दिया और अगले दिन आने के लिए कहा. अजित, राकेश और गौतम रकम लेने के लिए पहुंचे. उन लोगों ने किराये पर एक इंडिगो कार ली और एक जगह पर खड़ी कर दी. वहां से कुछ दूरी पर अजित अपनी टाटा सफारी में था. इसके बाद राकेश और गौतम अपने दूसरे साथियों द्वारा लाए गए बाइक पर सवार हो गए और फिरौती की रकम वाली बैग उठाने के लिए आगे बढ़ गए. यह सब बड़ी सर्तकता के साथ किया जा रहा था. वे बैग को उठाकर अजित के पास पहुंचे. अजित ने उसमें से 1 लाख रूपए निकाल कर राकेश को दे दिया. उन सभी ने बाइक को वहीं छोड़ दिया और गौतम के साथ इंडिगो में बैठकर चले गए. अजित अपनी टाटा सफारी से वाणी पहुंचा. जहां राकेश पहले ही पहुंच चुका था. रकम उन्हें मिल चुकी थी. पुलिस का खतरा भी उन्हें महसूस नहीं हुआ था. 

इसके बाद अंगद को इंडिका कार से नासिक ले जाया गया और फिर ब्रिज के पास उतार कर वहां से चले गए. सभी अपने प्लानिंग की सफलता पर बड़े खुश थे. फिल्मी पटकथा की तरह चली रियल मूवी का अंत सुखद हुआ, लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी. पुलिस ने बच्चा पैदा होने के एक छोटे से क्लू के आधार पर पूरे केस को साॅल्व कर लिया और बच्चे की किलकारी ने उन किडनेपरों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. पुलिस ने आरोपी की पत्नी भारती के लाॅकर से 50 लाख रूपये बरामद किए. कुल मिलाकर पुलिस ने 90 लाख रूपये नगद, अपहरण में उपयोग में लाए गई गाड़िया, मोबाइल आदि जब्त किए.

अपने स्कूली दोस्त को भी नहीं बक्शा


मास्टर माइंड अजित अपराजित पैसों का इतना भूखा और लालची था कि उसने किडनेपिंग से पैसे कमाने के लिए अपने स्कूली दोस्त के बच्चे को किडनेप करके उससे 81 लाख रूपये ले लिए. अंगद का अपहरण करने के पहले उसने 3 और बच्चों का अपहरण किया था. अजित गोरेगांव के एक मराठी स्कूल से पढ़ा था, जहां उसके साथ एक दोस्त भी पढ़ता था. उसके बचपन का दोस्त एडवरटाजिंग का काम करता था. उसने काफी रूपये कमाए थे. जब अजित को पता चला कि उसके दोस्त की कमाई काफी अच्छी है तो उसने अपने दो साथियांे अशोक देठे और सपन चक्रवर्ती के साथ मिल कर दोस्त के 3 साल के बेटे का उसके घर से 17 जनवरी 2014 को अगवा कर लिया. अशोक और सपन उसके घर पर कोरियर कंपनी के सर्विस बाॅय बनकर घुसे थे. उस वक्त घर पर कामवाली बाई और बच्चा ही थे. बच्चे का अगवा कर उसका वीडियो बनाकर मेमोरीकार्ड में दोस्त के पास भेंजवा दिया और उससे 1 करोड़ रूपयों की डिमांड की. आखिर में उसका दोस्त 81 लाख रूपये देने के लिए राजी हुआ. अजित अच्छी तरह से जानता था कि उसके दोस्त के पास 81 लाख रूपये नगद मौजूद है. वह इतनी ही रकम दे सकता है क्योंकि उसके दोस्त ने हाल ही में अपना एक फ्लैट बेचा था, जिसकी रकम उसे मिली थी.

फिरौती की रकम देने के लिए उसने दोस्त को फोन किया. उससे कहां यदि वह अपने बेटे की सलामती चाहता है तो गोरेगांव के ब्रीज पर अपनी कार पर एस या नो लिख कर जानकारी दें. फोन मिलने के बाद उसका दोस्त तुरंत गोरेगांव ब्रीज पर अपनी कार ले जाकर उस पर बड़ेबड़े अक्षरों में एस लिख कर शाम तक खड़ा रहा. शाम को उसे नए सिम खरीद कर नंबर मैसेज करने के लिए कहां गया. वह खुद भी हर बार नए नंबर से फोन करता था. अगले दिन उसे रूपए लेकर वीटी स्टेशन पहुंचने के लिए कहां. वहां पहुंचने पर उसे गोदावरी एक्सप्रेस में बैठने के लिए कहां गया. 

वह फोन पर अपने दोस्त को निर्देश देता रहा. जैसे ही इगतपुरी से ट्रेन छूटी उसने एक खास स्थान बताया. जहां अजित के लोग पहले से ही मौजूद थे. उसने उस स्थान पर नोटों से भरा बैग फेंक देने के लिए कहा. दोस्त ने वैसा ही किया, जैसा उसे बताया गया था. अजित ने दोस्त को फोन करके बताया कि उसका बच्चा गोकूल धाम में स्थित एक छोटे से चायनीज रेस्टोरेंट में है. अजित के लोग बच्चे को उस स्थान पर छोड़कर चले गए. इस मामले में सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि अजित ने अपने जिस दोस्त के बच्चे का अपहरण किया था, वह उसके ठीक घर के सामने ही रहता था. अजित को दोस्त के घर पर होने वाली सारी गतिविधियां पता थी. बाद में भी उसे पुलिस की सारी कार्यवाही पता चल रही थी. अजित ने 2013 में एक बिजनेसमैन के लड़के का अपहरण किया था, जो उसका काफी करीबी थी. उससे 12 लाख रूपये की फिरौती लेने के बाद उस बच्चे को छोड़ा था. उससे पहले 2012 में कुर्ला के एक जानपहचान वाले बिजनेस मैन के बच्चे का अपहरण किया. उसे पता था यह बिजनेस मैन 50 लाख तक दे सकता है, पर उसकी चाल उल्टी पड़ गई. बिजनेस मैन ने एक पैसा भी देने से मना कर दिया. आखिर में अजित ने बच्चे को बिना फिरौती के छोड़ दिया.

अजित ने वादे के अुनसार अपने सभी साथियों को बतायी गई रकम उनको दे दी थी अजित ने फिरौती की रकम से ज्वैलरी खरीद कर अपनी गर्लफ्रेंड को दी थी. अजित शादीशुदा है. उसकी पत्नी भारती उसके बच्चे की मां बनने वाली है. इसके बावजूद अजित का एक कालगर्ल से संबंध है. वह उस पर काफी रूपये लुटाता है. इस हैरत अंगेज फिल्म सी लगने वाली वारदात को सुलझाने वाले पुलिस अधिकारी भी किडनेपरों के व्यवहार व तरीकों से आश्चर्यचकित थे. अधिकारियों के अनुसार, अपराधी अपराध करने के बाद कोई न कोई निशान जरूर छोड़ जाता है. इस मामले में निशान ढुढ़ना मुश्किल हो गया था. यह बात भी कहीं जा रही है कि यदि अंगद ने मनीष के घर बेटा पैदा होने की बात न बतायी होती तो हो सकता था मामले को सुलझाने में कुछ और वक्त लग जाता. मुंबई के इतिहास में यह मामला भी एक खास मामलों में दर्ज हो गया. (कथा पुलिस सूत्रों तथा मीडिया में छपी जानकारी पर आधारित)

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