Crime Story in Hindi : सिरफिरा आशिक

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Crime Story in Hindi : सिरफिरा आशिक
सिरफिरा आशिक


New Crime Story सिरफिरा आशिक


उस वक्त रात के लगभग 10 बज रहे थे। मैरिज गार्डन में सुहानी और रोहन के वरमाला की तैयारी चल रही थी। दोनांे जोड़े स्टेज पर कुर्सी पर बैठे थे। दोनों के चेहरे पर छाई खुशी को देखकर लग रहा था कि दोनों अपने भावी दाम्पत्य जीवन को लेकर काफी खुश है। थोड़ी ही देर में दोनों ने एक-दूसरे को वरमाला पहनाया तो गार्डन में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज गई। इसके बाद दोनों को बधाई, आर्शीवाद और तोहफे देने का सिलसिला शुरू हुआ। साथ में फोटोग्राफी भी चल रही थी।

जहां गार्डन के अंदर में खुशियों और उत्साह का माहौल था वहीं गार्डन के बाहर एक सख्स बड़ी बैचेनी से गार्डन का चक्कर लगा रहा था। वह क्या करना चाहता था, उसको खुद समझ में नहीं आ रहा था। वह सख्स खुद अपने आप से बढ़बढ़ा रहा था, ‘मुझे ऐसा करना चाहिए.... नहीं, यह ठीक नहीं रहेगा...... सुहानी तूने बहुत बूरा किया।’ वह पैर पटकता हुआ चहल कदमी कर रहा था। रह-रह कर उसका हाथ कमर पर जा रहा था। ऐसा करते हुए उसे एक घंटा बीत गया।




अंदर स्टेज पर कुछ भीड़ कम हो चुकी थी। बाहर चहल कदमी कर रहा वह सख्स तेज कदमों से स्टेज के पास पहुंचा। वहां स्टेज पर वर-वधु के अलवा कुछ लोग खड़े थे जो वर-वधु को बधाईयां दे रहे थे। जैसे ही वह सख्स स्टेज पर चढ़ा, सुहानी की निगाह उससे टकराई। वह अपनी खूंखार नज़रों से सुहानी को देख रहा था। उसे देखते ही सुहानी पसीने से तरबतर हो गयी। वह कुछ कह पाती, इसके पहले उस सख्स ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल ली। उसने पिस्तौल सुहानी पर तान दी और बहुत ही नजदीक से उस पर फायर कर दिया। गोली उसके सीधे दिल में लगी और पार करती हुए पीठ से बाहर निकल गयी। गोली लगते ही सुहानी कटे पेड़ की तरह स्टेज पर गिरकर तड़पने लगी।

वहां चीख पुकार मच गया। इतने में वह सख्स रोहन की ओर घुमा। शायद वह रोहन पर दूसरा फायर करना चाहता था। इसके पहले वहां मौजूद एक मेहमान ने उस सख्स को जोर का झपटा दिया। वह सख्स खुद को संभाल पाता इसके पहले फोटो खिंच रहे फोटोग्राफर ने पीछे से उसे धक्का दिया वह सख्स संभल नहीं सका और गिर गया। वहां आस-पास खड़े लोगों ने उसे पकड़ लिया।

शादी समारोह में खुशी और उत्साह का माहौल मातम में बदल गया। रोहन तुरंत लहुलुहान सुहानी को उठाकर अस्पताल के लिए रवाना हो गया। रास्ते में सुहानी की हालत गंभीर हो गयी। उसकी सांसे उखड़ने लगी। उसे बचाने के लिए रोहन ने अपना मुंह सुहानी के मुंह से लगाकर सांस देने की कोशिश की मगर कोई लाभ नहीं हुआ। अस्पतरल में डाक्टरों ने जांच के बाद सुहानी को मृत घोषित कर दिया।

सुहानी को गोली लगने पर समारोह स्थल पर सन्नाटा पसर गया था। वर-वधु के परिजन सिसकिया भर रहे थे। लोग एक-दूसरे को दिलासा दे रहे थे कि सुहानी को कुछ नहीं होगा। वह जल्दी ठीक हो जाएगी। थोड़ी देर बाद जब सुहानी की मौत की खबर मिली तो फिर जैसे वहां कोहराम मच गया। परिजन, रिश्तेदार, दोस्त सबकी खुशी खत्म हो गई। सभी की आंखों में आंसू देखकर सुहानी के माता-पिता को भी यह समझते देर नहीं लगी कि अब उनकी बेटी इस दुनिया में नहीं है। सुहानी की मां लक्ष्मी इस हादसे के बाद अचेत हो गई।




सुहानी को गोली मारने वाले की पहचान मोहन के रूप में हुई। अनुराग, सुहानी के बुआ का लड़का है। पकड़े गए मोहन को तब तक शादी समारोह में शामिल गुस्साए बराती और रिश्तेदारों के एक बड़े समूह ने लात-घूंसों से पीटना शुरू कर दिया। किसी ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी। पुलिस जब तक मौके-ए-वारदात पर अपने दल-बल के साथ पहुंचे तब तक लोगों ने मोहन को मार-मार कर अधर मरा कर चुके थे। पुलिस ने वहां पहुंच कर आरोपी मोहन को भीड़ से बचाया वर्ना उसकी वहीं मौत हो जाती। लोगों की मार से मोहन की हालत काफी खराब हो चुकी थी। उसके मुंह से खून बह रहा था। शरीर पर भी कई जगह घाव के निशान दिखाई दे रहे थे। मोहन को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस सबसे पहले अस्पताल ले गई। जहां मोहन का मेडिकल करवाया। उसके कई दांत टूट चुके थे। जबड़ा भी बूरी तरह से फ्रेक्चर हो चुका था। पुलिस ने अगले दिन मोहन को अदालत में पेशकर दो दिन के रिमांड पर ले लिया।

सुहानी की हत्या करने के बाद मोहन के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। अगले दिन जब उसे एक पुलिस वाले से पता चला कि गोली लगने से सुहानी की मौत हो चुकी है। यह सुनकर उसे पहले विश्वास नहीं हुआ, पर जब पुलिस वाले ने इस बात को सही बताया तो वह फफक-फफक कर रो पड़ा। वह पुलिस से निवेदन करने लगा, ‘‘साब, मेरा एनकाउंटर कर दो मैं अब जीना नहीं चाहता।’’ मोहन ने अपनी मेमेरी बहन सुहानी की हत्या क्यों कि यह जानने के लिए हमें कुछ साल पीछे जाना पड़ेगा।

10-12 साल पहले की बात है। रामदास के बहनोई राजकुमार की हालत काफी गंभीर थी। वे मृत्यु की घड़ियां गिन रहे थे। उस वक्त राजकुमार ने रामदास से कहा कि उसकी मृत्यु के बाद उसके लड़के मोहन की देखभाल अच्छे से करें जिससे वह पढ़ लिखकर अच्छा इंसान बन सकें। उस वक्त रामदास ने अपने बहनोई से मोहन को पढ़ाने-लिखाने का वचन दिया। इसके कुछ दिनों बाद राजकुमार भगवान को प्यारे हो गए।

रामदास ने अपना वचन पूरा करने के लिए मोहन को अपने यहां बुला लिया। मोहन के आते ही सुहानी की मां लक्ष्मी काफी खुश हुई। उनका कोई बेटा नहीं था इसलिए उसे अपने बेटे की तरह पालने लगी। वैसे भी वह अपने पति के बहन का लड़का था। इस नाते वह बेटे की तरह था। मोहन और सुहानी की उम्र भी लगभग समान थी। दोनों पहले तो भाई-बहन की तरह रहते थे। आपस में चुहलबाजी और हंसी मजाक भी करते थे। धीरे-धीरे मोहन के मन में सुहानी के प्रति प्यार का अंकुर फूटने लगा। सुहानी के प्रति उसका नजरिया बदल चुका था। वह उसे अपनी भावी पत्नी के रूप में देखने लगा था।

एक दिन जब उससे रहा नहीं गया तो उसने अपने प्यार का इजहार सुहानी से कर दिया। सुहानी ने जब मोहन के मुंह से ऐसी बातें सुनी तो उसके पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। उसने कभी भी मोहन को ऐसी नजरांे से नहीं देखा था। वह उसे हमेशा अपना भाई मानती थी। उसके हाथों में राखी बांधती थी। सुहानी समझदार लड़की थी। उसने मामले को संभालने की कोशिश की। उसने मोहन को समझाने की भी कोशिश की कि वे दोनों रिश्ते में भाई-बहन है। भाई-बहन का रिश्ता पवित्र रिश्ता है। यह रिश्ता पति-पत्नी के रूप में कभी नहीं हो सकता। ऐसा करने पर समाज क्या कहेगा। लोग हम पर थूकेंगे।
इस पर मोहन भड़क गया। उसका कहना था, ‘‘समाज और लोगों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। तू मेरी है और किसी की नहीं हो सकती।’’

सुहानी ने मोहन को हर तरह से समझाने की कोशिश की, पर उसके सिर पर इश्क का भूत सवार था। वह किसी भी रूप में सुहानी की बात मानने के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद से सुहानी मोहन से दूर-दूर रहने लगी थी। वह उसके सामने कम आने की कोशिश करती। जितना दूर रह सकती थी वह मोहन से दूर रहती थी।

सुहानी की यह बात मोहन को बर्दाश्त नहीं हुई। एक दिन मोहन ने हद कर दी। उसने सुहानी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचना चाहा, तब सुहानी ने मोहन को जोरदार फटकार लगाई। उसने मोहन के नाजायज प्रस्ताव को ठुकरा दिया, बल्कि उसके इस नापाक करतूत के बारे में अपनी मां और पिता को भी बता दिया। यह करीब दो साल पहले की बात है। जब माता-पिता को मोहन के गंदी नियत का पता चला तो उन्हें बड़ा दुख हुआ। जिसे वे अपना बेटा समझ कर पाल रहे थे वह तो आस्तिन का सांप निकला। रिश्तो और मान मर्यादा को तार-तार होने से बचाने के लिए रामदास ने मोहन को अपने घर से निकल जाने के लिए कहा।





मोहन समझ चुका था। यहां से निकाल देने का मतलब है सुहानी को उसका प्यार कबूल नहीं है। उसने अपने मामा को धमकी दी, ‘‘मैं यहां से चला भी गया तो भी सुहानी मेरी है....... मेरी रहेगी.......उसे किसी ओर की होने नहीं दूंगा।’’

मोहन के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर रामदास घबरा गए।
मामा के घर से निकलने के बाद मोहर अपने दिमाग से सुहानी को निकाल नहीं पाया था। रह-रह कर जब उसे सुहानी की याद आती वह तनाव में आ जाता था।

इस दौरान सुहानी की मुलाकात रोहन से हुई। पहली ही मुलाकात में दोनों में प्यार हो गया। मिलने जुलने का दौर चला और दोनों एक दूसरे के काफी नजदीक आ गए। दोनों के परिजनों ने इस रिश्ते को मंजूरी देने में देरी नहीं लगायी और दोनों की सगाई हो गई। इस सगाई समारोह में रामदास ने अपनी बहन और मोहन को नहीं बुलाया। इन्हें निमंत्रण न भेंजने का कारण था कही मोहन इस समारोह में पहुंच कर कोई हंगामा न खड़ा कर दे।
उसी दिन दोनों के शादी की तारीख तय हुई। सगाई के बाद सुहानी ने अपनी सगाई के कुछ खास फोटोग्राफस फेसबुक पर पोस्ट कर दिए।

एक दिन अचानक सुहानी की सगाई के फोटोग्राफस फेसबुक पर देखें तो वह पागल जैसे हो गया। वह सीधे रामदास के घर पहुंचा। उसने वहां कड़क आवाज में अपने मामा-मामी और सुहानी से कहा, ‘‘सुहानी की जो सगाई हुई है उसे तोड़ तो वर्ना ठीक नहीं होगा। सुहानी मेरी है मेरी होकर रहेगी। वह किसी और की नहीं हो सकती।’’

इसके बाद उसने सुहानी को सगाई तोड़ने के लिए कई एसएमएस भी किए। सुहानी और उसके परिवार वाले मोहन की हरकतों से परेशान हो चुके थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करंे?

सुहानी के शादी के ठीक आठ दिन पहले मोहन ने सुहानी को एसएमएस भेंज कर उसे मारने की धमकी दी। उसने एसएमएस में लिखा, ‘यदि तुमने रोहन से शादी की तो मैं तुम्हें जान से मार दूंगा।’ एसएमएस पढ़ कर सुहानी बूरी तरह से घबरा गई। इस एसएमएस को उसने अपने पिता को नहीं दिखाया था। उसने मां और अपने भावी पति रोहन को बताया। इन लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। उन्हें लगा कि मोहन, सुहानी की शादी को रोकने के लिए महज उसे डरा रहा है।

मोहन द्वारा दी गई धमकी की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। सभी शादी की तैयारी में लगे हुए थे। सुहानी भी मोहन की धमकी को भूल चूकी थी। शादी के दिन रात के लगभग 10 बजे वरमाला का कार्यक्रम शुरू हुआ। तब तक सब कुछ ठीक था। वहां उपस्थित सभी परिजन आने वाले भूचाल से अनजान थे। लगभग 11 बजे मोहन स्टेज पर पहुंचा और उसने सुहानी पर फायर कर उसे मौत की नींद सुला दिया।

सुहानी पर गोली चलाने के बाद मोहन ने खुद को गोली मारनी चाही थी, पर सुहानी पर गोली चलने के बाद लोगों ने उसे पकड़ लिया था। वह तो रोहन की भी हत्या करना चाहता था, लेकिन उसे इतना मौका ही नहीं मिला कि वह रोहन पर गोली चला सके और सुहानी से शादी करने की उसे सजा दे. किसी से प्यार करना अच्छी बात है लेकिन रिस्तों की मर्यादा को नहीं तोड़ना चाहिए. (कथा पुलिस सूत्रो व जनचर्चा पर अधारित है.)

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