Crime Story in Hindi : असीरगढ़ के किले में खूनी खेल
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Crime Story in Hindi | new crime story असीरगढ़ के किले में खूनी खेल
प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर बसा एतिहासिक नगर है बुरहानपुर। वहां लगभग 22 किलोमीटर दूर असीरगढ़ का किला है। इंदौर बुरहानपुर रोड पर बसा यह किला रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। इस छोटे से कस्बे में स्थिति असीरगढ़ किला कई किंवदंतियों को अपने में समेटे हुए है। कहा जाता है कि गुरू द्रोणाचार्य के बेटे घटोतकच्छ की आत्मा आज भी इसी किले में रहती है। इसलिए कोई भी व्यक्ति रात के समय इस किले में नहीं ठहरता है। लोगों द्वारा कहीं बातों को सच मानें तो जिस किसी ने भी इस जनश्रुति को नकारने की कोशिश की है वह रात में इस किले के अंदर गया और अगले दिन जब वह आदमी सुबह किले से बाहर आता है तो पागल हो जाता है ऐसा कहा जाता है।
फरवरी का महिना था। वेलेंटाइन-डे नजदीक होने के कारण आसपास के शहरों से एकांत की तलाश में घूमने के बहाने किले में आने वाले प्रेमी-जोड़ों की संख्या में इजाफा होने लगा था। इसलिए निम्बोला थाना प्रभारी का ज्यादातर समय असीरगढ़ चैकी में ही बीत रहा था। इस दौरान एक दिन दोपहर के समय किले से लौटे एक बदहवास जोड़ें ने किले में हाथी खाने के पास किसी जवान महिला की लाश पड़ी होने की सूचना दी।
दरअसल इंदौर से आया कॉलेज स्टूडेंट का यह जोड़ा किले में एकांत तलाशता हुआ अंदर तक चला गया जहां पड़ी एक लाश ने उनके लव-ट्रिप को डरावने सफर में बदल दिया था। दोनों प्रेमी खासे डरे हुए थे। जाहिर है कि वे इस यात्रा पर अपने घर वालों से बोलकर तो आए नहीं होंगे इसलिए उन्हें डर था कि कहीं उनका नाम किसी कानूनी विवाद में न फंस जाए।
लाश की खबर पाते ही इंस्पेक्टर चुलमुल पांडे तुरंत सतपुड़ा पर्वत माला की एक ऊंची चोटी पर बने इस किले में हाथी खाने के पास जा पहुंचे। मौके पर पड़ी लगभग 30 वर्षीय महिला की अर्धनग्र लाश सडना शुरू हो चुकी थी। इससे उन्होंने अनुमान लगाया कि महिला की हत्या कम से कम दो-तीन दिन पहले हुई होगी। थाना प्रभारी और उनकी टीम ने किले में आसपास हत्या से जुड़े सुराग की तलाश की, लेकिन उन्हें वहां ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे मृतका के बारे में कुछ पता चल सके। वहां पर कुछ न पाकर ऐसा लगता था हत्यारा काफी शातिर था, तभी तो अपने पीछे केवल लाश छोड़ गया था, कोई सुराग नहीं।
पुलिस के काफी प्रयासों के बाद भी मरने वाली युवती की पहचान न हो सकने के कारण उसे लावारिस मानकर दफना दिया। इस घटना के लगभग चार माह बीत चुके थे, पर अभी तक उस मृतका की कोई पहचान नहीं हो सकी थी।
दोपहर का समय था। थाना प्रभारी ऑफीस में बैठकर अपना काम निपटा रहे थे कि अचानक उनका फोन घनघना उठा। उन्होंने रिसीवर उठाकर कहा, हैलो, थाना प्रभारी बोल रहा हूं।
मैं महाराष्ट्र से इंस्पेक्टर माइकल बोल रहा हूं।
जी हां कहिए अचानक कैसे याद किया।
आपके थाना क्षेत्र में किसी 30 वर्षीय महिला की हत्या हुई थी।
थाना प्रभारी असीरगढ़ किले में हाथी खाना के पास मिली युवती की लाश को अभी भूले नहीं थे। उन्होंने उस लाश के बारे में इंस्पेक्टर माइकल को सब कुछ बता दिया।
थाना प्रभारी की बात सुनकर इंस्पेक्टर माइकल ने बताया कि मरने वाली महिला का नाम रूकमनी था। उसकी हत्या नीतिन नामक युवक ने की है जो अब पुलिस की गिरफ्त में है। नीतिन ने केवल रूकमनी की ही हत्या नहीं की थी बल्कि उसकी 17 वर्षीय जवान होती बेटी कोमल और 11 वर्षीय बेटे रितेश की भी हत्या की थी।
रूकमनी की हत्या असीरगढ़ किले में हुई थी। इसलिए पुलिस की एक टीम वहां गई और आरोपी नीतिन को वारंट पर ले आई। यहां पुलिस आरोपी को लेकर असीरगढ़ किले में उस जगह पर गई, जहां उसने रूकमनी की हत्या की थी। नीतिन ने रूकमनी और उसके दोनों बच्चों की हत्या क्यों की, इस सवाल के जवाब में तिहरे हत्याकांड की छुपी कहानी इस तरह उजागर हुई।
महाराष्ट्र में की रहने वाली रूकमनी अपनी सुंदरता और ऊंची पूरी कद काठी के चलते उम्र से पहले ही जवान दिखने लगी थी। गांव के मनचले युवक दिनभर उसकी गली के चक्कर लगाया करते थे। यह देखकर उसके पिता ने नादान उम्र में ही रूकमनी का विवाह एक सजातीय युवक से कर दिया।
शादी के बाद रूकमनी जब बीस साल की हुई तब तक वह तीन बच्चों की मां बन चुकी थी। तीन बच्चों की मां बनने के बाद भी रूकमनी का मन अभी भी जवान था जबकि उसके पति की कमर गृहस्थी के बोझ तले झुकने लगी थी। इसलिए बचपन से दर्जनों प्रेमियों को अपनी गली के चक्कर लगाने को मजबूर कर देने वाली रूकमनी को अपनी जवानी का यह रूखापन रास नहीं आया। इस कारण शादी के लगभग दस साल बाद वह अपने पति को छोडकर बच्चों के साथ मायके में आकर रहने लगी।
मायके में रूकमनी ने गुजारे के लिए नौकरी खोज ली। नौकरी के दौरान ही उसकी मुलाकात नीतिन से हुई। मायके में रूकमनी दोहरी जिंदगी जी रही थी। घर और समाज वालों के सामने वह परित्यक्ता थी, जबकि घर से बाहर नौकरी के बहाने निकलकर वह नीतिन के साथ उसकी सहचरी बनकर वैवाहिक जीवन जी रही थी।
नीतिन और रूकमनी की नजदीकी की जानकारी किसी को न थी। इस रिश्ते को हमेशा राज बनाए रखने के लिए रूकमनी और नीतिन ने गांव छोडने का फैसला कर लिया। इसके लिए एक दिन पूना में काम मिलने की बात कहकर रूकमनी अपने बड़े बेटे को मायके में छोडकर बेटी कोमल और सबसे छोटे बेटे को लेकर नीतिन के साथ पूना आ गई।
पूना में दोनों पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगे। कई साल तक साथ रहे लेकिन इस बात की जानकारी रूकमनी के मायके वालों को फिर भी नहीं हो सकी। क्योंकि पूना आने के बाद न तो रूकमनी ने अपने माता-पिता से संपर्क किया और न ही उसके माता-पिता ने अपनी बेटी की खोज खबर ली। कुछ ही समय में रूकमनी का नीतिन से भी मन भर गया।
सच तो यह है कि रूकमनी को नए-नए पुरूषों से दोस्ती बनाने का आदत उसे बचपन से ही थी। लोगों का कहना है कि चैदह-पन्द्रह साल की उम्र में ही रूकमनी ने कई प्रेमी पाल रखे थे। जिनसे वह रात के अंधेरे में घर के पिछवाड़े में मिला करती थी। इस बात की जानकारी हो जाने पर उसके माता-पिता इसीलिए जल्दी ही उसकी शादी कर दी थी।
रूकमनी अपने पति के साथ दस साल तक ही रही, पर नीतिन से उसका मन तीन-चार साल में ही भर गया और वह अपने लिए नए पुरूष की तलाश में रहने लगी। इस बीच एक दिन नीतिन, रूकमनी और रितेश को लेकर शेगांव में गजानन महाराज की समाधि दर्शन के लिए गया। शेगांव में समाधि पर दर्शन करते हुए रूकमनी की नजर अपने पास खड़े एक युवक लेखराम पर पड़ी जो ललचाई नजरों से लगातार रूकमनी को देख रहा था।
लेखराम को देखकर रूकमनी को लगा कि उसे जिस युवक की तलाश थी वह यही है। उसने उसे भगवान का प्रसाद मानकर स्वीकार करने की ठान ली। नीतिन आंख बंद किए ध्यान में खोया हुआ था। यह देखकर रूकमनी ने उस युवक को इशारे से अपने पास बुलाया। रूकमनी ने उससे सीधे पूछ लिया, क्या तुम मुझे पसंद करते हो?
‘‘हां.........।’’
‘‘जिंदगी भर मेरा साथ निभाओगे?’’
‘‘हां सात जन्मों तक साथ दूंगा। मंदिर के अंदर खड़ा हूं झूठ नहीं बोलूगा।’’
‘‘तो चलो,’’ कहते हुए नीतिन को मंदिर में बैठा छोडकर रूकमनी अपने नए प्रेमी का हाथ थामकर मंदिर से बाहर आकर उसके साथ गायब हो गई। इधर ध्यान-पूजा के बाद नीतिन, रूकमनी को न पाकर परेशान हो गया। वह उसे खोजते-खोजते थक हार कर वापस घर लौट आया। मां और भाई के गायब हो जाने की बात सुनकर कोमल भी परेशान हो गई, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी।
दूसरी तरफ चूंकि नीतिन बिना शादी के ही रूकमनी के साथ रह रहा था इसलिए उसने रूकमनी की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज नहीं करवाई। मंदिर से भागकर रूकमनी, लेखराम के साथ दूसरे गांव में जाकर रहने लगी। इधर उसके मायके वालों को अब तक रूकमनी के बारे में कुछ भी नहीं पता था, न उन्हें नीतिन अथवा लेखराम के बारे में कुछ जानकारी थी।
सोलह साल की हो चुकी रूकमनी की बेटी कोमल अब भी नीतिन के साथ ही रह रही थी। रूकमनी को डर था कि कहीं उसकी गैर मौजूदगी में नीतिन, कोमल को अपने साथ न सुलाने लगे। इसलिए कोमल को अपने पास लाने के लिए रूकमनी ने एक चाल चली। उसने एक दिन नीतिन को फोन किया और अकोला आने के लिए कहा। नीतिन ने उसके गायब हो जाने के बारे में पूछा तो रूकमनी ने कहा कि यह लंबी कहानी है। तुम अकोला आकर मुझे साथ ले चलो में सब बता दूंगी।
रूकमनी के मिल जाने की खुशी में पागल नीतिन उसे लेने अकोला पहुंच गया। रूकमनी के इंतजार में सुबह से शाम हो गई लेकिन उसे अकोला में रूकमनी नहीं मिली। जिसके बाद वह रात में वापस पूना लौट गया। पूना पहुंचकर उसे रूकमनी के धोखे के बारे में पता चला। वास्तव में नीतिन को अकोला बुलाना रूकमनी की साजिश थी। इसलिए इधर नीतिन अकोला गया और उधर पीछे से पूना आकर रूकमनी, कोमल के साथ-साथ घर का सारा कीमती सामान भी अपने साथ लेकर भाग गई। रूकमनी की इस हरकत से नीतिन का दिल टूट गया। वह समझ गया कि रूकमनी अब कभी भी उसके पास लौटकर नहीं आएगी। वह सब कुछ भूलकर जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगा।
इधर रूकमनी, लेखराम के साथ खुश थी और लेखराम भी अपने से उम्र में बड़ी प्रेमिका रूकमनी को पाकर खुद को धन्य समझने लगा था। वह रूकमनी को रानी बनाकर रखना चाहता था इसलिए उसने पिता से अपना पैतृक हिस्सा भी ले लिया था और तमाम पैसा रूकमनी तथा उसके बच्चों पर लुटाने लगा। इधर रूकमनी ने देखा कि वह पूना से जो सामान भरकर लाई थी उसमें नीतिन की बीमा पॉलिसी भी आ गई थी। रूकमनी को नीतिन पर दया आ गई और उसकी बीमा पॉलिसी वापस देने के लिए नीतिन को नादेड़ में बुलाया और लेखराम के साथ उससे मिलने गई।
रूकमनी ने लेखराम से नीतिन का परिचय अपने फुफेरे भाई के रूप में करवाया। रूकमनी को सामने देखकर नीतिन उसे अपने साथ वापस चलने की जिद्द करने लगा। इस पर रूकमनी ने कहा कि कोमल की शादी होते ही वह जल्दी ही उसके पास लौट आएगी।
नीतिन अपना मन मार कर पूना लौट गया। घर पहुंचने पर रूकमनी का एक और धोखा उसके सामने आ गया। हुआ यह कि साथ रहते हुए रूकमनी ने नीतिन और अपने अंतरंग पलों की कई फोटो खींचे थे। उन फोटो को उसने नीतिन की बीमा पॉलिसी वाले लिफाफे में रख दिए थे। जिन्हें वह नीतिन को पॉलिसी का लिफाफा देते समय निकालना भूल गई थी।
नीतिन ने रूकमनी और लेखराम के अर्धनग्र फोटो देखे तो वह सब समझ गया। वैसे भी नीतिन, रूकमनी के चरित्र को अच्छी तरह समझ चुका था। वह न अपने पति की हुई और न प्रेमी की। नीतिन ने चुप रहना ही बेहतर समझा और सोच लिया कि अब वह रूकमनी से कोई संबंध नहीं रखेगा।
इधर लेखराम और रूकमनी की कहानी आगे बढने लगी, लेकिन जल्द ही रूकमनी का मन लेखराम से भी भर गया। लेकिन रूकमनी, लेखराम को छोडना नहीं चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि जिस तरह से लेखराम उस पर और उसके बच्चों पर पैसा लुटाता है वैसा कोई दूसरा प्रेमी नहीं कर सकता है।
इसलिए उसका सोचना था कि जब तक मन लगा ठीक जब मन भर गया तो पुराने को बाहर कर इस घोंसले में नये पंछी को पाला जा सकता है, लेकिन नए प्रेमी की खोज से पहले वह लेखराम के साथ अपना रिश्ता पुख्ता करने की गरज से उस पर शादी करने के लिए दबाब बनाने लगी।
लेखराम तैयार था मगर उसे रूकमनी के साथ रहने के लिए शादी की कोई जरूरत भी नहीं थी। वह शादी के पचड़े में पडना नहीं चाहती था। इसलिए पहले तो शादी टालता रहा, लेकिन जब रूकमनी ने शादी के लिए अधिक जोर दिया तो उसे रूकमनी पर कुछ-कुछ शक होने लगा। उसने इस राज को जानने की कोशिश की तो पता चला कि उसकी गैर मौजूदगी में कई मर्दो का उसके घर पर आना-जाना है।
लेखराम, नीतिन जैसा धीरज वाला नहीं था। उसने मन ही मन ठान लिया कि वह इस धोखे का बदला रूकमनी और उसके परिवार को मिटाकर लेगा। इसके बाद उसने योजना बनाकर एक-एक कर कोमल, रूकमनी और रितेश की हत्या कर दी।
पुलिस द्वारा पूछताछ में लेखराम ने बताया कि उसने मां, बेटी और बेटे की हत्या करने में दस दिनों का समय लिया। इसके लिए वह सबसे पहले 17 साल की कोमल को यह कहकर अपने साथ ले गया कि वह कोमल को अपने माता-पिता से मिलाने गांव ले जा रहा है ताकि उसके बाद रूकमनी से अपनी शादी की बात घर वालों से कर सके। रूकमनी को उसके इरादों पर शक नहीं हुआ, जबकि दूसरी तरफ लेखराम, कोमल को लेकर जंगल में पहुंचा जहां उसकी निर्ममता से हत्या करने के बाद लाश को गहरे गड्ढे में फेंक दिया और दो दिन बाद घर वापस लौट आया गया।
जब रूकमनी ने उससे कोमल के बारे में पूछा तो उसने बता दिया कि चाचा-चाची ने कुछ दिनों के लिए कोमल को गांव में ही रोक लिया है। लेखराम ने कोमल की हत्या के बाद अगले ही दिन रितेश को अपने मकान मालिक के पास छोडकर रूकमनी को असीरगढ़ किला घुमाने के बहाने ले आया। यहां जब दोनों किले में पहुंचे तो उन्होंने कई प्रेमी जोड़ों को झाडियों में छुपकर प्रेमालाप करते हुए देखा। यह देखकर लेखराम ने रूकमनी को एकांत में चलने के लिए कहा।
लेखराम की मंशा भांपकर रूकमनी भी सहर्ष राजी हो गई। एकांत की तलाश करते-करते दोनों हाथी खाना के पास पहुंच गए। वहां दूर-दूर तक कोई नहीं था। एकांत पाकर दोनों झाडियों में प्रेमलीला में खो गए। इस दौरान मौका पाकर लेखराम ने रूकमनी का गला दबा दिया और उसके बेहोश होने पर उसके सिर पर पत्थर पटककर उसकी हत्या कर दी और लाश को वहीं छोडकर अपने घर वापस आ गया।
लेखराम को अकेले घर लौटा देखकर रितेश ने अपनी मां के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसकी मां भी कोमल दीदी के साथ गांव में रूक गई है और एक-दो दिन में लौट आएगी। रूकमनी की हत्या के दो दिन बाद लेखराम, रितेश को उसकी मां और बहन से मिलाने के बहाने अपने साथ ले गया और दूर जंगल में ले जाकर उसकी भी हत्या कर दी।
तीनों मृतकों की लाशें अलग-अलग समय पर अलग-अलग थानों की पुलिस को सड़ी-गली अवस्था में मिली। उनमें से किसी की पहचान भी नहीं हो सकी। उसने जिस सफाई से तीनों की हत्या की थी उससे उसके पकड़े जाने की कोई संभावना नहीं थी। यहां तक कि तीनों लाश की पहचान न हो पाने की वजह से पुलिस उन्हें लावारिस मानकर अलग-अलग जगहों में दफना चुकी थी।
लेकिन कहा जाता है कि भगवान सब देखता है। उसके यहां देर जरूर है अंधेर नहीं। ठीक वैसा ही लेखराम के साथ हुआ। रूकमनी और उसके दोनों बच्चों की हत्या के आरोप में नीतिन को फंसाने के चक्कर में लेखराम खुद पुलिस की गिरफ्त में आ गया।
वहां यह कि एक दिन लेखराम अपने आप को पुलिस की गिरफ्त से बचाने के लिए पुलिस को फोन पर बताया कि रूकमनी, कोमल और रितेश की हत्या पूना में रहने वाले नीतिन ने की है। पहले तो पुलिस ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया लेकिन नीतिन बार-बार पुलिस को गुमनाम फोन करके परेशान करने लगा। उसने नीतिन का पता भी पुलिस को बता दिया। यही नहीं, उसने कई बार पुलिस को नीतिन के स्टेशन पर होने की तो कभी बस स्टैंड पर खड़े होने की झूठी खबर पुलिस को देता था।
इधर जब थाने में बार-बार इन हत्याओं के संबंध में गुमनाम फोन आने लगे तो एक दिन पुलिस ने नीतिन को हिरासत में ले लिया। जब पुलिस ने नीतिन से रूकमनी, कोमल और रितेश के बारे में पूछताछ किया तो उसने बताया कि लगभग तीन साल पहले रूकमनी, लेखराम नामक एक युवक के साथ भाग गई थी। संयोग से उसके पास नीतिन और रूकमनी के अर्धनग्र तस्वीरें थी। उसने उन फोटोग्राफस को पुलिस के हवाले कर दिया।
इधर लेखराम को थोड़ा सा भी ज्ञात नहीं था कि नीतिन के पास उसके और रूकमनी के अर्धनग्र फोटोग्राफस है जिसके सहारे पुलिस उस तक पहुंच सकती है। एक दिन उसने पुलिस को गुमराह करने के लिए झूठी खबर दी कि नीतिन, नादेड़ बस स्टैंड पर खड़ा है। पुलिस की हरकत देखने के लिए लेखराम खुद भी नादेड़ बस स्टैंड पहुंच गया। पुलिस जानती थी कि यह झूठे फोन करने वाला तमाशा देखने मौके पर जरूर आया होगा, पर अब तक तो वह उसे पहचानती नहीं थी लेकिन अब नीतिन के पास रूकमनी और लेखराम के फोटो में पुलिस लेखराम को देख चुकी थी सो पुलिस बताए गए स्थान पर पहुंची तो वहां खड़े लेखराम को देखकर पुलिस उसे पहचान गई और पकडकर थाने ले आई। जहां पहले तो लेखराम अपने आपको बेकसूर बताता रहा लेकिन जब पुलिस ने उसके सामने रूकमनी के साथ उसके अर्धनग्र फोटो दिखाए तो वह टूट गया और अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
पुलिस द्वारा पूछने पर लेखराम का कहना है कि रूकमनी उस पर शादी का दबाव बना रही थी जिससे तंग आकर उसने उसके साथ उसके दोनों बच्चों की हत्या कर दी, लेकिन सूत्र बताते हैं कि मां बेटी की हत्या का कारण कुछ और ही है। दरअसल लेखराम के साथ रहते हुए रूकमनी की बेटी कोमल 17 साल की हो चुकी थी सो पहले पिता और फिर नीतिन तथा अब लेखराम के साथ अपनी मां के संबंधों को भली प्रकार समझने लगी थी।
कोमल अपनी मां के चरित्र से सीख लेते हुए उसने भी कई प्रेमी पाल लिए थे। रूकमनी खुद भी कई प्रेमियों से संबंध थे, इसलिए वह अपनी बेटी पर रोक नहीं लगा सकी। उल्टे कहा तो यहां तक जाता है कि खुद रूकमनी ने भी बेटी के कुछ नादान प्रेमियों को अपने रंग में रंग लिया था। धीरे-धीरे मां-बेटी का यह रूप मोहल्ले में चर्चित हो गया और लेखराम की गैर मौजूदगी में मां और बेटी दोनों के चाहने वाले घर आने लगे थे।
जब यह बात लेखराम को पता चली तो उसे गहरा धक्का लगा। क्योंकि वह रूकमनी के प्रति पूरी तरह समर्पित था और कोमल को अपनी बेटी और रितेश को बेटा मानकर दोनों के भविष्य के लिए चिंतित था, लेकिन रूकमनी के व्यवहार से उसका मन गहरे अवसाद से भर गया और उसने इस धोखे की सजा मां-बेटी की हत्या के रूप में दी। रितेश की हत्या उसकी मजबूरी थी क्योंकि रितेश के जिंदा रहने पर रूकमनी और कोमल की गुमशुदगी कभी भी चर्चा में आ सकती थी। उसने इतनी सफाई से तीनों कत्ल किए थे कि उसका पकड़ा जाना लगभग नामुमकिन था लेकिन अपराध कभी छुपता नहीं है। पाप सामने आ ही जाता है।
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