How to made animation film | कैसी बनती है एनिमेशन फिल्म
How to made animation film | कैसी बनती है एनिमेशन फिल्म |
हर किसी के मन में यह जरूर आता होगा एनीमेशन फिल्में कैसी बनती है. एनीमेशन फिल्म बनने की पूरी प्रक्रिया होती है. इसे पूरा करने के लिए पूरी टीम लगती है.
सभी का काम बटा होता है. तब जाकर एक अच्छी एनीमेशन फिल्म कम्पलिट हो पाती है. आजकल इसमें इफैक्ट और बैकग्राउंड साउड का भी प्रयोग किया जा रहा है. जिसकी वजह से एनीमेशन फिल्में कमाल की लने लगती है.
How to made animation film | कैसी बनती है एनिमेशन फिल्म
एनीमेशन फिल्म कर शुरूआत कार्टून फिल्मों से हुई है. आज कार्टून फिल्में भी एनीमेशन की प्रक्रिया से पूरी की जाने लगी है. जब कंप्युटर नहीं था तब कार्टून फिल्में हाथ से बना करती थी.
हाथों से बनाएं कार्टून चित्रों को एक प्रोजेक्टर पर फ्रेम दर फ्रेम दिखाया जाता था. हाथ से बनी कार्टून सीरीज की रफ्तार कम होती थी. जिसकी वजह से वह उतनी अच्छी नहीं दिखती थी.
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इन चित्रों को स्पष्ट दिखायी देने के लिए इसे कंप्युटर पर बनाया जाने लगा. जिसमें गति होने की वजह से तस्वीर स्पष्ट व अच्छी दिखायी देने लगी. आजकल थ्री डी इफेक्ट वाले एनिमेशन बनने लगे हैं. जो काफी स्पष्ट व जीवंत लगते हैं.
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एनिमेशन फिल्म बनने के लिए एक पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. प्रसिध्द एनिमेटर एस. चक्रवर्ती ने इस बारे में पूरी जानकारी दी.
सबसे पहले फिल्म की स्टोरी को छोटे-छोटे हिस्सों में बाट लिया जाता है. इसके बाद बैक ग्राउंड या लैंड स्कोप बनाया जाता है, जिस पर कैरेक्टर्स की मूवमेंट होती है.
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इनके बाद फिल्म के फ्रेम बनाएं जाते हैं. फिल्म के प्रत्येक एक सेकेण्ड में 24 फ्रेम होते हैं. दृश्य के अनुसार फ्रेम घट बड़ सकते हैं. यदि दृश्य धीमे हैं तो फ्रेम कम हो जाएंगे. तेज होने पर फ्रेम बढ़ाए जाते है.
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चित्रों को ट्रांसपेरेंट शीट जिसे सेलुलाइड कहा जाता है उस पर लिकिंग यानी कापी किया जाता है. लिकिंग के बाद सेलुलाइड को कलर किया जाता है. अब इन सेलुलाइड को बैक ग्राउंड में इस तरह से फिट किया जाता है. जिससे ऐसा लगे कैरेक्टर्स बैक ग्राउंड के विपरीत दिशा में चल रहे हैं.
कैरेक्टर्स को आवाज देने के लिए फिल्म शूट करने के पहले डायलाग की रेकार्डिंग करके मैग्नेटिक फिल्म पर ट्रांसफर ले लिया जाता है.ै साउंड रीडर की मदद से शब्दों को सीलेबल्स में बदला जाता है.
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डायलाग के अनुसार फ्रेम तय किए जाते हैं. साउंड रीडर डायलाग को नापता है. किस कैरेक्टर को किस शब्द पर कितना मुंह खोलना और बंद करना है.
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डायलाग के अनुसार फ्रेम को शूट किया जाता है और मैच किया जाता है. लैब में इमेज और साउंड का मिलान किया जाता है. फिल्म शूट हो जाने के बाद बैक ग्राउंड म्युजिक और स्पेशल इफैक्ट डाले जाते हैं. लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बाद एक एनिमेशन फिल्म तैयार होती है. इस काम के लिए 30-40 लोगों की टीम होती है. (काॅपीराइट टुडे एण्ड टुमारो फीचर)
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