Crime Story (Hindi) : दूसरी चाबी Part-2



Crime Story (Hindi) : दूसरी चाबी Part-2

दूसरी चाबी Part-1 का शेष

मोहनी और उसकी मां में झगड़ा क्यों हुआ था?
रूकमणी देवी की हत्या किसने और क्यों की? जानने के लिए पढ़े भाग-2

पुलिस की सख्ती और कड़क आवाज सुनकर मोहनी समझ चुकी थी कि अब उसका अधिक समय तक चुप रहना मुश्किल है। इसलिए उसने सचसच बता देने में ही अपनी भलाई समझी।
मोहनी ने टेबल पर रखा पानी का गिलास उठा लिया और एक ही सांस में उसे पी गई। उसने गिलास रखते हुए कहना शुरू किया।
उस रात मेरा और मां का झगड़ा हुआ था। वह मेरी शादी अपनी पंसद के लड़के से करना चाहती थी, लेकिन मैंने उनसे कहा, मैं सतीश से प्यार करती हूं। उसी से शादी करना चाहती हूॅ। सतीश दिल्ली में रहता है। उस दिन मां को जब सतीश के बारे में बताया तो वह बहुत नाराज हुई। उन्होंने सतीश के साथ मेरी शादी से इंकार कर दिया। बस, इसी बात पर हम दोनों में बहस हुई थी। गुस्सा होकर मैं उसी समय सतीश के पास दिल्ली चली गई थी।
दिल्ली पहंुच कर जब सतीश को मैंने अपनी मां का फैसला सुनाया तो वह बोला, इसमें इतना झगड़ने की क्या बात थी। उसके समझाने पर मेरा गुस्सा शांत हो गया। उसने मुझे मां से फोन पर बात करने के लिए कहा।
सुबह मैंने दिल्ली से ही मां को फोन किया, पर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। उस दिन मैंने दिनभर में कई बार फोन किया, पर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

मां फोन रिसीव नहीं कर रही थी। इससे मुझे लगा वह मुझसे बहुत नाराज है इसीलिए वह मेरा फोन रिसीव नहीं कर रही है। मैंने सोचा जब उनका गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुद ही फोन करेगी, लेकिन उन्होंने फोन नहीं किया।
दुसरे दिन भी मैंने मां को फोन किया पर उन्होंने रिसीव नहीं किया। इसलिए जब मैं दिल्ली से गांव लौटने लगी तो मुझे मां की नाराजगी का डर था। मैंने अपने मामा को साथ लेकर घर आई, ताकि वह मां को समझाकर उनके गुस्से को शांत कर सकें।
मैं मामा के साथ घर आई तो देखा मैन गेट पर ताला लगा हुआ है। ताला खोलकर हम कमरे आए तो मां को ..........’’ कहते हुए मोहनी  रोने लगी।
‘‘दरवाजे मंे लगे ताले की चाबी तुम्हारे पास कैसे आई?’’ चैकी प्रभारी ने पूछा।
‘‘जी, ताले की दो चाबियां है। एक मेरे पास रहती है और दूसरी मां के पास।’’ मोहनी  ने हड़बड़ा कर जवाब दिया।
इसका मतलब हत्यारा जो भी था उसने आसानी से आपकी मां की हत्या की होगी और फिर ताला लगाकर चला गया।’’
‘‘मुझे इसके बारे में नहीं पता।’’
‘‘तुम्हारी मां के पास की दूसरी चाबी कहां हैं?’’

‘‘जी वह घर पर ही है। मोहनी के मुंह से यह बात सुनते ही पुलिस का माथा ठनक गया। क्योंकि अगर कोई बाहरी व्यक्ति रूकमणी देवी की हत्या करने के बाद बाहर से ताला बंद करता है तो स्वाभिक है चाबी भी अपने साथ ले जाता।
जब कि मोहनी के अनुसार, रूकमणी देवी की चाबी घर में ही रखी हुई थी। ऐसे में चाबी कमरे के अंदर कैसे पहुंची। इसका मतलब साफ था कि रूकमणी देवी देवी की हत्या के बाद ताला उस चाबी से नहीं लगाई गई थी उनके पास घर में रखी थी। यानी ताला या तो मोहनी की चाबी से लगाया गया था या फिर किसी तीसरी चाबी से।
मोहनी पुलिस के शक के घेरे में आ चुकी थी। एएसआई ठाकुर आरती के मोबाइल की काॅल डिटेल निकालने में जुट गए। जिससे पता चला कि मोहनी का लंबीलंबी बातें दिल्ली के में रहने वाले सतीश से होती थी।
घटना वाले दिन भी जिस समय मोहनी और उसकी मां का झगड़ा हुआ था उस दिन झगड़े के बाद मोहनी ने सतीश से लंबी बात की थी। पुलिस को जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि मोहनी का उसकी मां से सतीश को लेकर ही झगड़ा हुआ था। इसके बावजूद वह उसी से इतनी लंबी बात कैसे कर सकती थी।
 पुलिस को सबसे चैंकाने वाली बात जो पता चली वह यह थी कि जिस दिन शाम को मोहनी मामा को साथ लेकर घर पहुंची थी उस दिन दोपहर में भी मोहनी के मोबाइल की लोकेशन डोंगरगांव की ही मिली। जबकि आरती ने पुलिस को यही बताया था कि मां के फोन न उठाने पर वह दिल्ली से सीधे अपने मामा के पास आई थी और उन्हें साथ लेकर अपने घर पहुंची।

पुलिस ने मोहनी के खिलाफ अपनी मां रूकमणी देवी की हत्या का मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया और थाने भेंज दिया। जहां से दूसरे दिन उसे अदालत में पेश किया गया।
अदालत से उसे पुलिस रिमांड पर भेंज दिया गया। मोहनी के रिमांड मिलते ही पुलिस मामले की तह तक पहुंचने की जी तोड़ कोशिश में लग गए।
पुलिस द्वारा पूछताछ के दौरान मोहनी ने जो कुछ बताया उसके आधार पर रूकमणी देवी की हत्या की कहानी कुछ इस प्रकार थी।
पति की मौत के बाद रूकमणी देवी ने घर में ही कास्मेटिक्स की दुकान खोल ली। उनकी इच्छा अपनी इकलौती बेटी मोहनी को अपने पैरों पर खड़ा करने की थी। क्योंकि वह जानती थी कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। यदि उन्हें कुछ हो गया तो उसके बाद मोहनी बेसहारा हो जाएगी। वह बिलकुल अकेली रह जाएगी।
लेकिन कुदरत को शायद कुछ और ही मंजूर था। तभी तो सोलह साल पूरा करते ही वह अपनी मां के मना करने के बावजूद दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी के लिए आवेदन दे दिया। संयोग से उसे वहां नौकरी भी मिल गई।
इसी कंपनी में सतीश भी नौकरी करता था। एक दिन मोहनी की मुलाकात सतीश से कंैटीन में हो गई। उनका आपस में परिचय हुआ। धीरे धीरे दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगी। सतीश, मोहनी की सुंदरता पर मरमिटा था। वह उसके आसपास ही मंडराने लगा।
सतीश को इस तरह से मंडराते देखकर मोहनी भी अपने आपको उससे दूर नहीं रख सकी। वह सतीश की प्यार भरी बातों में जल्दी ही आ गई। दोनों का प्यार आपसी संबंधों तक पहुंच गया।
एक दिन सतीश ने उससे अपने प्यार का सबूत मांगा तो मोहनी भी कहा पीछे रहने वाली थी। उसने आगे बढ़कर सतीश के हाथों अपने आपको सौंप कर प्यार का ऐसा सबूत दिया कि सतीश उसके तनमन से खेलने लगा।
मोहनी यौवन की दहलीज पर खड़ी थी। जहां लड़कियों के लिए सबकुछ स्वर्ग जैसा सुंदर होता है। वह अपने अच्छे बूरे की परवाह किए दुनिया की तमाम खुशियों को पा लेना चाहती थी। उनके लिए जीवन का मतलब खाओ पीओ और मौज मस्ती करना ही हो गया था।
मोहनी, सतीश के प्यार को ही अपना सबकुछ मानने लगी थी। दोनांे प्यार के रास्ते में बहुत आगे तक निकल गए। जहां उसके लिए सतीश कामदेवता बन कर खड़ा था। उसे प्यार की डगर पर गौते लगाने में मजा आने लगा। यह सब उसके सपनों की दुनिया जैसा था।
इसी बीच मोहनी का एडमीशन दिल्ली में हो गया। पढ़ाई के साथसाथ मोहनी और सतीश की प्रेम कहानी भी आगे बढ़ती गई। बात यहां तक पहुंच गई कि पढ़ाई के बहाने अपनी सहेली के घर पर रूकने का बहाना बनाकर मोहनी सतीश के साथ उसके कमरे में रात बिताने लगी।
समय बीतता गया। मोहनी फाइनल ईयर में आ गई थी। अब रूकमणी देवी को उसकी शादी की चिंता होने लगी। वह चाहती थी कि उनके ही समाज को कोई योग्य लड़का मिल जाए तो वह मोहनी के हाथ पीले कर दें।
मोहनी ने अपनी मां से साफसाफ शब्दों में कह दिया कि वह अपनी पसंद के लड़के से शादी करना चाहती है। वर्ना वह किसी से शादी नहीं करेगी। रूकमणी देवी आरती की शादी अपने ही समाज में करने के पक्ष में थी। शादी को लेकर आएं दिन मां बेटी में बहस होने लगी।
रूकमणी देवी बात बढ़ने से पहले ही अच्छे लड़के से उसकी शादी करने की योजना बनाने लगी। वह लड़के की खोजबीन में जुट गई, लेकिन जब मोहनी को पता चला कि उसकी मां उसकी शादी अपने ही समाज के किसी लड़के से करना चाहती है तो उसने इसका विरोध करते हुए कहा कि वह सतीश को अपना सबकुछ सौंप चुकी है और उसी को अपना पति मानती हूं।

मोहनी के मुंह से यह सब सुनकर उसकी मां रूकमणी देवी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। उन्हें गैर समाज में बेटी की शादी जरा भी मंजूर नहीं था। फिर समाज क्या कहता कि पिता नहीं था तो मां एक बेटी का भी ध्यान ठीक तरह से नहीं रख सकी। बस इसी बात को लेकर 24 नवंबर को मां बेटी में झगड़ा शुरू हो गया। रूकमणी देवी ने अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कह दिया कि उसे वही शादी करनी पड़ेगी जहां वह चाहती है वर्ना उसे अपनी जायदाद से एक पैसा भी नहीं देंगी। रूकमणी देवी, मोहनी को अपना अंतिम फैसला सुनाकर सोने चली गई।
इधर मोहनी रोजरोज के झगड़े से परेशान हो चुकी थी। ऊपर से अपनी मां की बात सुनकर वह गुस्से से भर गई। कहते हैं गुस्सा बुद्धि को नष्ट कर देता है। गुस्से से भरा इंसान अच्छे बुरे के बारे में सोचता नहीं है और अपना काम कर देता है जिसका परिणाम उसे भुगतना पड़ता है।
ठीक वहीं मोहनी के साथ हुआ। उसने भी गुस्से में आकर मन ही मन एक भयानक फैसला कर लिया। जैसे ही उसकी मां गहरी नींद में सो गई। मोहनी ने घर में रखें लोहे की छड़ से अपनी मां के सिर जोरदार वार किया। वार इतना तेज था कि रूकमणी देवी का सिर फूट गया। इतने से ही उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ। उसने गैस पर चिपटा गर्म किया और उससे मां की दोनों हाथों की नसों को काट दिया। ताकि रूकमणी देवी के बचने की कोई संभावना न रहे। रूकमणी देवी के दोनों कलाई से खून बहने लगा।
जब मोहनी को यकीन हो गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है तो वह चुपचाप घर से बाहर निकली और दरवाजे पर ताला लगाकर सतीश के पास दिल्ली चली गई। जहां से योजना बनाकर दूसरे दिन मामा को लेकर अपने घर पहुंची। उसका मानना था कि बेटी होने के नाते कोई उस पर शक नहीं करेगा लेकिन घर के ताले की दूसरी चाबी ने उसकी सारी सच्चाई पुलिस के सामने ला दी।
कहते हैं अपराधी चाहे कितनी भी सफाई से अपराध करें उससे कोई न कोई गलती अवश्य होती है जो उसके अपराधी होने की पुष्टि करते हंै। इधर मोहनी का कहना है कि वह निर्दोष है उसे जबरन फंसाया गया है। मोहनी के मामा को भी इस बात पर भरोसा नहीं कि मोहनी अपनी मां की हत्या कर सकती है।

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