Hindi Crime Story : दसवीं पास युवक के शोभराज बनने की रोमांचक कथा
Hindi Crime Story : दसवीं पास युवक के शोभराज बनने की रोमांचक कथा
दसवीं पास युवक के शोभराज बनने की रोमांचक कथा
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सुरेश ने शोभराज बनने की शुरूआत आज से 20 साल पहले शुरू कर दी थी. सुरेश अपने गांव से करीब 15 किलोमीटर दूर एक गांव में गया और वहां एक सम्पन्न किसान से मिला. उसने किसान को अपनी दुखभरी कहानी सुनाई. उसने किसान को बताया, उसकी सौतेली मां उसे बहुत मारती है. खाना नहीं देती है. उसे सम्पत्ति से भी बेदखल कर दिया है. सुरेश की दर्दभरी कहानी सुनकर किसान ने उसे अपने घर में पनाह दे दी. वह वहां उसके बेटे की तरह रहने लगा. उसे किसी बात की कमी नहीं होने दी, पर सुरेश इन सब बातों से संतुष्ट नहीं था. उसकी निगाह तो किसान के रूपयों पर थी. एक दिन मौका पाकर उसने आलमारी में रखे 2000 रूपये निकाले और वहां से फरार हो गया. आज से 20 साल पहले 2 हजार रूपयों की काफी एहमियत थी.
वहां से भागने के बाद वह महोबा पहुंचा. कई दिनों तक भटकने के बाद वह एक एडवोकेट से मिला. उसने एडवोकेट के सामने अपनी मां उर्मिला यादव द्वारा मारपीट किए जाने और सम्पत्ति से बेदखल करने की बात कहीं. एडवोकेट को कहानी सुनाते वक्त उसने उर्मिला यादव के आगे एमएलए शब्द भी जोड़ दिया. संयोग से उन दिनों उर्मिला यादव नाम की एक एमएलए भी थी. इसलिए एडवोकेट उसकी कहानी को सही मान लिया और सुरेश को अपने यहां रहने की जगह दे दी.
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एडवोकेट की अनेक पुलिस अधिकारियों से अच्छी पहचान थी. उनमें से एक अधिकारी लखनऊ में विधान सभा में सुरक्षा व्यवस्था में थे. उन्होंने उस पुलिस अधिकारी से विधायक उर्मिला यादव द्वारा अपने बेटे के साथ दुव्र्यवहार किए जाने की बात बतायी और उसे उचित न्याय दिलाने की बात कहीं. पुलिस अधिकारी ने उर्मिला यादव के बारे में अधिक जानकारी निकाली तो पता चला कि उनका कोई लड़का ही नहीं है. इसके बाद एडवोकेट ने सुरेश को पुलिस के हवाल कर दिया.
करीब सात माह बाद वह जेल से बाहर आया. जेल से बाहर निकलने के बाद वह वहां से इटावा पहुंचा. यहां पर ट्रांसपोर्टर योगेश सिंह भदौदिया के यहां काम करने लगा और मौका पाकर एक दिन भदौरिया का मंहगा मोबाइल चोरी करके वहां से भाग निकला. उसने मोबाइल को पन्द्रह सौ रूपए में बेच दिया. भदौरिया के लोगों ने पकड़ लिया और पुलिस को सौंप दिया. मोबाइल चोरी के आरोप में उस पर चार माह की जेल हो गयी. जेल में उसकी मुलाकात कई शातिर अपराधियों से हुई. उसने उन अपराधियों द्वारा किए गए किस्सों को सुना और उन किस्सों को अपने प्रेरणा का आधार बनाता रहा.
इटावा जेल से बाहर निकलने के बाद सबसे पहले उसने मैगजीन की दुकान सेे एक मैगजीन खरीदी. उस मैगजीन में आईएएस अधिकारियों और उनकी परीक्षा से संबंधित काफी जानकारियां दी हुई थी. उसने उन जानकारियों के एफ.एम लाइन को पढ़ा. इसके बाद उसने फर्जी आईएएस अधिकारी बनने का फैसला किया. उसने इस बात का ख्याल रखा, यदि प्रेजेंटेशन अच्छा हो तो किसी को भी इंप्रेस किया जा सकता है. अंग्रेजी उसकी काफी अच्छी थी. इसी के बल पर वह लोगों को इप्रेस करने लगा.
उसकी अंग्रेजी अच्छी होने के पीछे भी एक कहानी है. जब वह स्कूल में पढ़ता था. उसके एक टीचर ने एक दिन क्लास में सभी स्टुडेंट से कहां, जिंदगी में आगे बढ़ना है तो कोई सब्जेक्ट अच्छे से भले ही न आएं, लेकिन अंग्रेजी अच्छे से आना चाहिए. मतलब आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी आना जरूरी है. बस उसी दिन से सुरेश ने अंग्रेजी पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में वह काफी अच्छी अंग्रेजी बोलने लगा. इससे उसके क्लास टीचर काफी खुश थे. मगर सुरेश ने अपनी अच्छी अंग्रेजी का इस्तेमाल करियर बनाने की बजाएं ठगी करने में लगाया.
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उसने फर्जी आईएएस बनने की स्क्रिप्ट अपने दिमाग में अच्छे से बैठा ली. वह इटावा से गाजियाबाद पहुंचा. यहां पर इस्टेट एजेंट व बिल्डर आशुतोष सिंह से मिला और उनसे काम की मांग की. उसने बातों ही बातों में बता दिया कि वह 2005 बैच का आईएएस आफिसर है. माफिया ने सरकार पर दबाब बनाकर उसके खिलाफ साजिश रच कर उसे निलंबित कर दिया है. रोजी रोटी के लिए वह दूसरा काम कर रहा है. आशुतोष सिंह, सुरेश के हावभाव से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने उसे अपने यहां काम पर ही नहीं रखा, बल्कि उसे नौकरी फिर से दिलवाने की कोशिश में लग गया.
सन् 2009 की बात है. उन दिनों करमवीर सिंह यूपी के डीजी हुआ करते थे. करमवीर सिंह से आशुतोष सिंह की अच्छी पहचान थी. आशुतोष, सुरेश को साथ लेकर लखनऊ पहुंचे, ताकि करमवीर सिंह से मिलकर सुरेश यादव की निलंबन वापस हो सकें. उस दिन डीजी काफी वीजी थे. थोड़े से समय में उन्होंने सुरेश यादव से बातचीत की. उन्हें उसी वक्त सुरेश यादव पर शक हो गया. हालांकि उन्होंने आशुतोष को आश्वासन दिया कि इस मामले को देखता हूं. जैसे ही आशुतोष और सुरेश दोनों वहां से निकले करमवीर सिंह ने सचिवालय फोन कर सुरेश यादव के बारे में सारी जानकारी निकाली. जब तक आशुतोष सिंह, सुरेश को लेकर गाजियाबाद पहुंचते, रास्ते में ही डीजी साहब का फोन आया. उन्होंने कहां, जिसे लेकर तुम घुम रहे हो वह कोई आईएएस आॅफिसर नहीं बल्कि बहुत बड़ा ठग है. आशुतोष सिंह ने सुरेश यादव को कविनगर पुलिस के हवाल कर दिया.
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चार महिने बाद वह जेल से बाहर निकल कर सीधा रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से एक ट्रेन में बैठ गया. यह ट्रेन हाजीपुर के लिए जा रही थी. बातों में माहिर सुरेश यादव अपने सामने सीट पर बैठे व्यक्ति से बात करने लगा. उस युवक का नाम प्रवीण सिंह था. वह इस्टेट एजेंट था. सुरेश ने खुद को उसके सामने आईएएस के रूप में पे्रजेंट किया. सुरेश की हरकतों से प्रवीण को शक हुआ. उसने तुरंत आरपीएफ को इसकी सूचना दी. आरपीएफ वाले उसके पकड़ कर ले गए. एक बार वह फिर से जेल में चला गया. बार-बार जेल जाने के बाद भी उसकी आदत में सुधार नहीं आया.
इस बार जेल से निकलने के बाद वह गांव पहुंचा. गांव पहुंच कर उसने दूसरी शादी की तैयारी करने लगा. बचपन में उसकी पहले शादी हो चुकी थी. उसकी पहली पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. दूसरी शादी जिस लड़की से तय हुई थी उसके घरवालों को बताया था कि वह अंडमान निकोबार में कमिशनर है, पर फिलहाल वह सस्पेंड है. कोर्ट के आदेश मिलने तक वह स्कूल में टीचर की नौकरी कर रहा है.
सुरेश यादव की बात को उसके होने वाले ससुराल वाले सच मान बैठे और अपनी बेटी की शादी उसके साथ दे दी. वह जिस स्कूल में पढ़ाता था उसे मात्र 5 हजार रूपए मिलते थे. करीब एक साल तक उसकी पत्नी ने जैसे-तैसे गुजारा. एक दिन उसने सुरेश से कहां, इतने कम पैसों में घर का गुजारा करना मुश्किल है. तुम किसी अच्छे वकील से मिलो और अपने निलंबन का केस जल्दी से खत्म करवाओ.
उसकी पत्नी ने कुछ रूपयों का इंतजाम करके दे दिया. बड़े वकील से मिलने के बहाने सुरेश सन् 2014 में गांव से निकला और सीधे मुंबई चला आया. मुंबई में अंधेरी स्थित फ्रंड लाइन सिक्युरिटी एजेंसी में गार्ड की नौकरी करने लगा. वहां वह अपने साथी गार्डो के बीच कह रखा था, वह निलंबित आईएएस अधिकारी है. उसका सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने वाला है. उसने सिक्युरिटी आॅफिस के रिसेप्शन में कह रखा था, उसका मोबाइल खराब है. मैंने यहां का नंबर सुप्रीम कोर्ट को दे रखा है. यदि कोई काॅल आए तो मुझे सूचित करना. सुबह शाम आते जाते वह रिसेप्शन में जरूर पूछ लेता, उसका कोई काॅल आया क्या?
कुछ दिनों बाद सुरेश यादव ने किसी के मोबाइल से अंधेरी पुलिस स्टेशन पर फोन किया. उसने कहां, वह सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार आॅफिस से बोल रहा हूं. फला नाम का व्यक्ति फ्रंड लाइन सिक्युरिटी एजेंसी में काम करता है. उसे सूचना दे दो की आईएएस सुरेश यादव अपना केस जीत गया है. अंग्रेजी में दी गई सूचना को पुलिस भी सही मान बैठे. तुरंत एक सिपाही इसकी सूचना देने फ्रंड सिक्युरिटी के आॅफिस पहुंचा. सुरेश यादव की इस सूचना को सुनकर सिक्युरिटी एजेंसी का ड्राइवर सूबेदार यादव बहुत खुश हुआ.
सूबेदार यादव, सुरेश को साकी नाका के संघर्ष नगर में स्थित अपने घर पर ले गया. सूबेदार ने सुरेश की काफी खातिरदारी की. इसी दौरान सुरेश ने सूबेदार से कहा कि उसकी नाशिक कलेक्टर से अच्छी पहचान है. वहां क्लर्क की एक पोस्ट खाली है. यदि किसी रिश्तेदार को लगवाना चाहते हो तो लगवा लो. सूबेदार ने अपने बेटे को उस पोष्ट पर लगवा देने के लिए कहा. इसके लिए सुरेश ने साढ़े तीन लाख रूपयें मांगे. सूबेदार ने उसे साढ़े तीन लाख रूपये दे दिए. कुछ दिनों बाद उसने सूबेदार से कहा, उसे पता चला है कि एक स्टेनोग्राफर की भी जगह खाली हुई है. यदि कोई चाहता है तो देख लो. सूबेदार ने अपने एक परिचित शिवधन के लड़के को लगवा देने की बात की. सुरेश ने उससे भी साढ़े छह लाख ले लिए. इसके बाद वह मुंबई से फरार हो गया.
Hindi Crime Story : दसवीं पास युवक के शोभराज बनने की रोमांचक कथा
जनवरी 2016 में वह लौट कर मुंबई आया. सबसे पहले उसकी मुलाकात तारापुर के विजेन्द्र दीक्षित से हुई. उसने उन्हें 6 लाख रूपये की चपत लगा दी. दहिसर की लाल पांडे को डेढ़ लाख की चपत लगायी. इसके बाद वह साकी नाका के साध्वी बिहारी काम्पलेक्स में सिक्युरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा. यहां पर भी उसने अपनी आईएएस की दुखभरी कहानी सबको सुना रखा था. इस बिल्डिंग के सभी लोग सुरेश को अच्छी नज़र से देखने लगे. उनमें से मोहम्मद आरिफ खान, सुरेश यादव से काफी प्रभावित था. सुरेश यादव भी कम नहीं था. उसने धन्नासेठ आरिफ खान से दोस्ती बढ़ा ली और उसका मोबाइल नंबर भी एक दिन मांग लिया.
सुरेश ने एक बार फिर अंधेरी पुलिस स्टेशन वाला फार्मूला अपनाया. उसने जस्ट डायल से साकी नाका पुलिस स्टेशन का नंबर निकाल कर उन्हें अंग्रेजी में फर्जी नाम से फोन किया. जिसमें उसने कहां, वह सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार आॅफिस से बोल रहा है. आरिफ खान को बता दे कि आईएएस सुरेश यादव अपना केस जीत गए है. साकी नाका पुलिस आरिफ खान को अच्छी तरह पहचानते थे. उन्होंने पुलिस स्टेशन से फोन आने की वजह से आरिफ भी सुरेश यादव से और अधिक प्रभावित हो गए. उन्होंने तुरंत सुरेश यादव को साकी नाका पुलिस स्टेशन ले गए. वहां सभी अधिकारियों से मिलवाया.
पुलिस स्टेशन से निकलने के बाद आरिफ खान ने उसे एक मोबाइल, सिमकार्ड, 12 हजार मूल्य का एक चश्मा, 30 हजार रूपए नगद तथा एक एटीएम कार्ड व पिन नंबर दिया, ताकि वह ज्वाइनिंग करने के लिए जा सके. उन्होंने उसे एयरपोर्ट तक छोड़ कर भी आए. उनके जाने के बाद सुरेश ने टिकट कैंसिल करवा कर रूपये वापस ले लिए. वह मुंबई के होटल में रूका रहा. दो दिन बाद उसने आरिफ खान को फोन करके कहां, उसकी ज्वाइनिंग नहीं हो सकी है, क्योंकि सरकार ने कोर्ट के फैसले को फिर चैलेंज करने का फैसला किया है. वह वापस मुंबई आ रहा है. आरिफ खान उसे लेने एयरपोर्ट पहुंच गए. लौटते वक्त उसने आरिफ खान से बताया नौकरी ज्वाइंन करने के पहले वह अपने गांव से होकर आना चाहता है. हालांकि उसे कुछ रूपये दें. आरिफ ने उसे रूपये दे दिए.
सुरेश यादव 6 मई 2014 को प्लाइट से वाराणसी के लिए रवाना हो गया. यहां से वह टैक्सी से जौनपुर के लिए रवाना हुआ. जौनपुर पहुंचने के पहले उसने फर्जी नाम से बदलापुर पुलिस स्टेशन पर फोन गिया. उन्हें बताया कि कुछ ही देर में आईएएस सुरेश यादव वहां पहुंच रहे हैं. कुछ ही देर में एस्कार्ट टीम लालबत्ती की गाड़ी लेकर पहुंच गए. आईएएस अधिकारी समझ कर सभी अधिकारियों ने सुरेश यादव को सैल्यूट किया. फिर सुरेश याद को सुल्तानपुर के मर्चा गांव तक छोड़ आए. लालबत्ती से उतरते देख गांव वाले भी खुश हो गए. वे उसे आईएएस आॅफिसर समझने लगे.
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गांव में रहते हुए सुरेश ने आरिफ खान का फोन रिसीव करना बंद कर दिया. ऐसे में आरिफ खान को लगा, उसके साथ ठगी हो गई है. उन्होंने इसकी शिकायत साकी नाका पुलिस को कर दी. तेज तर्रार सीनियर इंस्पेक्टर अविनाश धर्माधिकारी ने तुरंत सुरेश यादव का फोन टेªपिंग पर लगा दिया. उसके मोबाइल का लोकेशन पुणे दिखाने लगा. सीनियर इंस्पेक्टर अविनाश धर्माधिकारी के नेतृत्व में पुलिस की टीम ने पुणे पहुंचकर सुरेश यादव को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद सुरेश यादव की शोभराज बनने की पूरी कहानी सामने आयी. (काल्पनिक कथा - Copyright Maanoj Maantra)
Web Title : Today and Tomorrow : Crime Story in Hindi | जीजा बनने के पहले साले का किया कत्ल
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